भारतीय संस्कृति खुली सोच तथा विशाल हृदय आत्मा

भारतीय संस्कृति खूली सोच तथा विशाल हृदय आत्मा की संस्कृति है। समकालिक राजनीति के विश्व में राजनीतिक प्रभाव को जमाने में धर्म को मत पंथ का सहारा लिया गया। किंतु भारत में संस्कृति कभी भी न तो विद्रुप हुई और न ही अन्य मत पंथ पर आघात किया। मानव एकता का विचार भारतीय संस्कृति का विचार है तथा इसीलिए हमारे ऋृषि, मुनि और आचार्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश वाहक रहें। इसी आधार पर हमारी राजनीति का सैद्धांतिक तत्व राष्ट्र की एकता का निर्माण और अखंडता हमारी राजनीति का सैद्धांतिक तत्व राष्ट्र की एकता का निर्माण और अखंडता की रक्षा के वचन कहा है तथा मर्यादित राष्ट्र जीवन का मूल्य परक विचार देश की राजनीतिक संस्कृति का ध्येय है। हम आध्यात्मिक जड़ को भूल रहे हैं।
इग्नू अध्ययन केन्द्र 27109 शिक्षा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यलाय एवं इग्नू क्षेत्रीय केन्द्र वाराणासी के संयुक्त तत्वाधन में ‘भारतीय राजनीतिक पद्धति पर सादृश्य संस्कृति के प्रभाव’ पर द्वि दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में उक्त बातें मुख्य अतिथि केन्द्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण बिहार, गया के मा0 कुलपति प्रो0 हरिश्चन्द्र सिंह राठौर ने कही। विषय की प्रस्तावना राजनीति विज्ञान के पूर्व अध्यक्ष डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅलेज, वाराणसी तथा मा0 राज्यपाल नामित कार्यपरिषद सदस्य वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यलाय, जौनपुर एवं प्रो0 राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) विश्वविद्यालय, प्रयागराज डाॅ0 दीनानाथ सिंह ने की तथा कहा कि राजनीतिक संस्कृति अधुना तुलनात्मक राजनीति का ज्वलंत सामाजिक अनुक्रिया का विषय है जिसे संस्कृति मानकर व्यवहार होने लगा है। हमारे लिए संविधान और प्रजातंत्र दोनों है किंतु राजनीतिक फल के लाभ के लिए राजनीतिक दल, धर्म संस्कृति, सभ्यता का घोल बना डालते हैं।
मुख्य वक्ता निदेशक ब्ैैच् कानपुर, डाॅ0 ए0के0 वर्मा ने कहा कि सादृश्य एक रूप नही है। किंतु स्वाधीन काल से हीं गांधी और पं0 नेहरू में अध्यात्म और संस्कृति पर मतैक्य नहीं रहा तथा परम्परा, अध्यात्म और नैतिकता में कई सादृश्य संस्कृति का समर्थन हुआ तथा भारतीय राजनीति ने पश्चिम की भांति समुदाय संस्कृति को मानने लगा। नुकसान हम सबके सामने है।
मुख्य वक्ता अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो0 गोपाल प्रसाद ने कहा कि देश की सामाजिक दशा और दिशा को इस कदर भौतिक संस्कृति के तराजू पर तौला जा रहा है जिससे राजनीतिक पद्धति मूल्यविहीन हो रही है। उन्होंने इस तरीके को समयानुपातिक संस्कृति कहा।
विशिष्ट अतिथि, प्रोफेसर राजनीति विज्ञान विभाग एवं संकायाध्यक्ष, समाज विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो0 कौशल किशोर मिश्रा ने कहा कि मूल्यहीन संस्कृति के रोपण का हर संभव प्रयास हो रहा किंतु हमारी संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं जो नष्ट नहीं हो सकती। आपने नीति कथनों से सादृश्यता के तरीकों की तीखी आलोचना की।
विशिष्ट अतिथि, प्रोफेसर राजनीति विज्ञान विभाग एवं मा0 सदस्य काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कोर्ट के प्रो0 संजय श्रीवास्तव ने विषय की संवैधानिक व्याख्या की तथा कहा कि कांग्रेस ने एक अलग संस्कृति की शुरूआत की जो मूल्य विखराव पर टिकी हुई थी। श्री नरेन्द्र मोदी ने संविधान के संशोधनों एवं समाज जीवन की स्थापना में राजनीतिक पद्धति को मजबूती प्रदान की है। संरक्षक/अध्यक्षीय भाषण अध्यक्ष एवं सकायाध्यक्ष, शिक्षा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय केे प्रो0 एस0के0 स्वैन ने की तथा उन्होंने डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर को भारतीय राजनीतिक पद्धति को संविधान की संरचना में संस्थापक कहा।
उद्घाटन सत्र सरस्वती वंदना से प्रारम्भ हुआ। संगोष्ठी का संयोजन डाॅ0 रवि प्रकाश सिंह ने किया। संचालन डाॅ0 पीयूष मणि त्रिपाठी तथा स्वागत इग्नू रीजनल केन्द्र वाराणसी के निदेशक डाॅ0 यू0एन0 त्रिपाठी एवं धन्यााद ज्ञापन इग्नू अध्ययन केन्द्र 27109, शिक्षा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यलाय के समन्वयक डाॅ0 आर0एन0 शर्मा ने किया।
तकनीकी सत्र की सह-अध्यक्षता करते हुए पूर्व अध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं राष्ट्रीय समन्वयक राजीव गांधी स्टडी सर्किल के प्रो0 सतीश राय ने कहा कि सामाजिक और राजनीतिक लोकतंत्र की खाई गहरी हुई तथा चैड़ाई बढ़ी है। कारण कई हैं। कई चुनौतियाँ हैं किंतु सहजता का नाम राजनीतिक संस्कृति दिया गया। आर्थिक सुधार, समाज संगठनों की मजबूती का प्रयास हुए किंतु चुनौतियाँ भी बढ़ी, भूमंडलीकरण में विश्व छोटा वैचारिक गहराई हुई।
तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, सकलडीहा पी0जी0 काॅलेज, चन्दौली के डाॅ0 अरूण उपाध्याय ने कहा कि तुष्टिरण की राजनीति ने भारतीय नैतिकता का हªास किया। सुशासन का अभाव ही संस्कृति के हªास का कारण है जिससे सामाजिक, राजनीतिक, वैयक्तिक कुरीतियाँ बढ़ी। इसकी रक्षा आंतरिक अनुशासन द्वारा ही संभव है।
तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता स्नातकोत्तर विभाग राजनीति विज्ञान, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका, झारखण्ड के डाॅ0 अजय सिन्हा ने भारतीय संविधान की संरचना और उसके क्रियाकलाप पर विस्तृत चर्चा की तथा कहा कि भारत और राज्य के नाम एक होने का आजतक समाधान नही हो पाया।
तकनीक विशेषज्ञ डाॅ0 दिनकर त्रिपाठी, राजनीति विज्ञान विभाग फिरोज गांधी काॅलेज, रायबरेली एवं मुख्य वक्ता प्रो0 कुवरलाल हीरालाल वासनिक, प्रोफेसर राजनीति विज्ञान विभाग, राजकीय विदर्भ विज्ञान एवं मानविकी संस्थान, महाराष्ट्र आदि ने भी विचार व्यक्त किया।
अध्यक्षीय भाषण मा0 पूर्व कुलपति, जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया प्रो0 योगेन्द्र सिंह ने कहा कि आजादी के बाद राजनीति में कई सांस्कृति चरित्र खड़े हो रहे हैं। अवधारणा नई है और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विषय सामने आया। समाज मूल में तथा राजनीतिक दिशा में अलग-अलग बढ़ी। इन्हीं का तुलनात्मक अध्ययन हुआ तथा राजनीतिक संस्कृति नाम दिया। भारत का लोकतंत्र त्रुटिपूर्ण है। 1916 के एक प्रतिवेदन में छिपा है तथा बाजार संस्कृति से प्रभावित है। इसमें सुधार की जरूरत है।
तकनीकी सत्र में स्वागत डाॅ0 श्रवण कुमार पाण्डेय, असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर, इग्नू रीजनल सेंटर वाराणसी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 आलोक गार्डिया, असिस्टेंट समन्वयक, इग्नू अध्ययन केन्द्र 27109 ने एवं संचालन डाॅ0 के0एस0 राठौर ने किया।

भवदीय

डाॅ0 रवि प्रकाश सिंह
संगोष्ठी संयोजक