उदय प्रताप कॉलेज की वर्तमान स्थिति


उदय प्रताप कॉलेज के प्रबंधन को लेकर एक वर्ग द्वारा कई वर्षो से विरोध किया जा रहा था।जिसके मूल में यह था चूंकि उदय प्रताप शिक्षा समिति ने पंजीकरण से पूर्व शासन से निवमावली स्वीकृत नहीं करवाई।इस प्रकरण में उदय प्रताप शिक्षा समिति ने यह स्वीकार किया कि हाँ यहाँ पर चूक हुई लेकिन यदि शासन को लगता है कि हमारी समिति न्यास के मूलभावना के विपरीत कार्य कर रही है तो हम संशोधन को तैयार हैं। विगत कुछ माह में आश्चर्यजनक घटनाक्रम हुए शासन का एक पत्र आया जिसमें उदय प्रताप शिक्षा समिति को भंग करते हुए उदय प्रताप कॉलेज एन्ड हीवेट क्षत्रिय स्कूल ट्रस्ट को बहाल करने की बात कही गयी।इस संदर्भ में शासन के आदेश के क्रम में कुलपति महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने ट्रस्ट को बहाल करने का आदेश जारी कर दिया।यहां तक तो सब ठीक लग रहा था लेकिन खेल अब शुरू हुआ।किसी भी प्रबंध समिति के चुनाव हेतु कई शर्तें होती हैं मसलन प्रबंध समिति विवादित न हो,चुनाव की पूर्व सूचना समाचार पत्रों में प्रकाशित करना, चिट्स फंड एंड सोसायटीज से प्रमाणित सदस्यों का नाम लेना इत्यादि।सभी लोग भलि भांति अवगत हैं कि प्रबंध समिति विवादित है, बिना किसी सम्यक प्रक्रिया के अनुपालन करते हुए ट्रस्ट के लोग 24 घँटे के भीतर कार्यभार भी ग्रहण कर लिए।अब आपको बता दें विश्वविद्यालय मात्र उदय प्रताप महाविद्यालय को ही निर्देश दे सकता है, जबकि इस कैम्पस में उदय प्रताप इंटर कालेज ,रानी मुरार बालिका कॉलेज,उदय प्रताप पब्लिक स्कूल एवँ आर एस एम टी हैं।विश्वविद्यालय इन सभी संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार प्रदान ही नहीं कर सकता।इसी बीच उच्च न्यायालय ने रजिस्ट्रार चिट्स फंड के उस आदेश को स्थगित कर दिया जिसके द्वारा उदय प्रताप शिक्षा समिति को भंग किया गया गया था।न्यायालय ने यह कहा कि मात्र नवीनीकरण न होने के कारण किसी संस्था को भंग नहीं किया जा सकता है।दूसरी तरफ सन 2018 में ही उच्च न्यायालय के डबल बेंच का आदेश काशी विद्यापीठ के कुलपति के ऊपर है कि वह उदय प्रताप शिक्षा समिति के प्रबंधन में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।इसपर कुलपति पर अवमानना की नोटिस भी आ चुकी एवँ कुलपति का आदेश जो ट्रस्ट को गठित करने को लेकर था वह भी स्थगित है।कुल मिलाकर पूरा प्रकरण उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। आज यह पोस्ट लिखने की आवश्यकता इसलिए पड़ी की तथाकथित राजर्षि के मानस पुत्र लड़ने भिड़ने एवँ मरने मिटने की बात कर रहे हैं।यहां कई संस्थाओं के कर्मचारियों/अध्यापकों का वेतन बैंक नहीं दे रहा है।इस कोरोना काल में उनकी स्थिति क्या होगी आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं।इसमें माननीय मुख्यमंत्री जी के नाम से अधिकारियों को गुमराह किया जा रहा है कि उनकी यह मंशा है कि ट्रस्ट ही कार्य करे।लेकिन सत्यता कुछ और है।कोई भी संस्था नियमों/प्राविधानों से चलती है।यदि मुख्यमंत्री जी की मंशा होती तो वह तत्काल एक अध्यादेश पारित कर देते क्योंकि बिना किसी अध्यादेश के प्रबंधन में परिवर्तन हो ही नहीं सकता।एक डर का माहौल खड़ा किया जा है।उच्चतम न्यायालय जाने की बातें हो रहीं हैं ,अरे पहले उच्च न्यायालय से तो प्रकरण निस्तारित हो जाए तब न कोई कहीं जाएगा।उदय प्रताप शिक्षा समिति हो या ट्रस्ट हो विधिक रूप से जो सही हो वह कार्य करे।किसी को कोई आपत्ति नहीं है।स्थगन आदेश का तात्पर्य ही यह है कि पूर्व की ब्यवस्थाएं यथावत रहेंगी।ऐसे में कर्मचारियों/अध्यापकों का वेतन रोकना घोर निंदनीय है।प्राचीन छात्र एसोसिएशन की स्थापना क्या शादी समारोह की बुकिंग करने बर्थ डे पार्टी करने के लिए हुई थी।तथकथित लोग लंबरदार लोग राजर्षि के मूल्यों की रक्षा करने निकले हैं।मात्र वारणसी में ही राजर्षि के इतने मानस पुत्र हैं कि उनके एक हुंकार से सब ठीक हो जाएगा।हम उपद्रव नहीं चाहते न्यायपालिका एवँ कार्यपालिका जो भी आदेश करे उसका पालन होगा।लेकिन इसकी आड़ में तानाशाही नहीं चलेगी। कर्मचारियों/अध्यापकों के वेतन भुगतान की समस्या को मैने इंडियन बैंक के संयुक्त सचिव को प्रस्तुत कर दिया है, आशा है इसी हप्ते निराकरण होगा।आप सभी राजर्षि के मानसपुत्रों से अनुरोध है कि किसी के बहकावे में न आएं न तो किसी को किसी भी प्रकार का चन्दा वगैरह दें।राजर्षि जी के मूल्यों की रक्षा होगी अवश्य होगी लेकिन विधि के अनुरूप होगी।कथित मानसपुत्रों से सावधान रहें यह आपको बरगलाएंगे,रोना रोएंगे।जबकि राजर्षि जी की मूलभावना से इनका कोई लेना देना नहीं है।इनको बस राजगद्दी चाहिए जिससे इनका जीवन सुखमय तरीके से चल सके।
जय राजर्षि
सुधांशु कुमार सिंह
प्राचीन छात्र उदय प्रताप कॉलेज
वाराणसी
नोट- यह लेखक के अपने विचार हैं,,,,,