गाजीपुर- सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ के दसवें महंत को उनकी चौदहवीं पुण्यतिथि पर अर्पित किया गया श्रद्धा सुमन

प्रखर ब्यूरो ग़ाज़ीपुर। जखनियां तहसील मुख्यालय से करीब चार किलोमीटर दूर स्थित सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ के दसवें महंत रामाश्रय दास जी महाराज को उनकी चौदहवीं पुण्यतिथि पर शनिवार को श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। लगभग 450 वर्ष प्रचीन निर्गुनिया संत परम्परा की महत्वपूर्ण कड़ी सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ के वर्तमान महंत शत्रुघ्न दास के नेतृत्व में मठ परिसर में विद्यमान ब्रह्मलीन महंत की समाधि पर शिष्य समुदाय के लोगों ने पूजन अर्चन किया। वहीं पीजी कॉलेज भुड़कुड़ा परिवार के लोगों ने अपने संस्थापक के चित्र पर पुष्प चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। साहित्य और अध्यात्म के प्रति रुचि रखने वालों के लिए विशेष महत्व रखने वाले भुड़कुड़ा मठ के दसवें गुरु रामाश्रय दास का प्रथम आगमन करीब पंद्रह वर्ष की अवस्था में सन 1934 के करीब होने का उल्लेख मिलता है। यहां आगमन के बाद संत बूला, गुलाल, भीखा की तपस्थली से उनका ऐसा नेह जुड़ा कि कुल, गोत्र, गांव, जंवार, परिवार सब पीछे छूट गए और उनका मन फकीरी में रम गया। उन्होंने तत्कालीन महंत रामबरन दास से दीक्षा लेकर विधिवत सन्यास आश्रम में प्रवेश किया। वह सन 1969 में मठ के दसवें महंत चुने गए। उन्होंने साधना का मार्ग चुना और गुरु के बताए मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन पर्यन्त सतनामी सद्गुरुओं की भूमि भुड़कुड़ा को सींचते रहे। वे मठ में आने जाने वाले श्रद्धालुओं से जनभाषा में संवाद करते हुए बड़ी ही आत्मीयता के साथ सन्त साहित्य और श्रीरामचरित मानस के गूढ़ रहस्यों का विवेचन विश्लेषण किया करते थे। कभी कभार मन हुआ तो हारमोनियम लेकर भजन गाना शुरू कर देते थे और ढोलक पर थाप देते थे। अपनी सहजता के कारण ही वह अपने जीवन काल में असहज परिस्थितियों का सामना भी हंसते खिलखिलाते हुए किया करते थे। साधारण भोजन, अति साधारण रहन सहन लेकिन हमेशा आध्यात्मिक ऊंचाई के शिखर पर आसनस्थ दिखाई देते थे। उन्होंने सन 1972 में अपने गुरु का अनुसरण करते हुए उच्चशिक्षा का प्रसार करने के उद्देश्य से इस दूरस्थ क्षेत्र में डिग्री कॉलेज की स्थापना किया, जो आगामी सितम्बर माह में पचास वर्ष पूर्ण कर स्वर्ण जयंती वर्ष मनाएगा। भौतिकता की चकाचौंध भरी इस दुनियां में उनका स्थूल शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी यशः काया मानवता के सन्ताप का क्षय करती रहेगी।