4500 जुर्माना न देने के लिए हजारों खर्च कर 7 वर्षों तक लड़ता रहा डाक विभाग, हाई कोर्ट ने लगाई कड़ी फटकार!


प्रखर प्रयागराज। आए दिन यह आरोप लगता रहता है कि अदालत में कोई मुकदमा एक बार शुरू हो जाए तो वह जल्दी खत्म होने का नाम नहीं लेता। मुकदमे से जुड़ा एक अजीबोगरीब मामला प्रयागराज से निकल कर सामने आया है, जहां पर डाक विभाग ने 4500 रुपए जुर्माना ना देने के एवज में 7 वर्षों तक मुकदमा लड़ा और हजारों खर्च कर दिये। जिसके बाद हाईकोर्ट में डाक विभाग को कड़ी फटकार लगाई है। बतादे कि जस्टिस विवेक चौधरी की सिंगल बेंच ने डाक विभाग के सीनियर सुपरीटेंडेंट की याचिका को खारिज कर दिया है। दरअसल मुरादाबाद की लोक अदालत ने डाक विभाग पर साल 2014 में 4500 रुपये का हर्जाना लगाया था. बताते चले कि स्पीड पोस्ट द्वारा भेजा गए पासपोर्ट और डिमांड ड्राफ्ट खो जाने को लेकर डाक विभाग पर हर्जाना लगाया गया था. मुरादाबाद की स्थाई लोक अदालत ने 30 सितंबर 2014 को आदेश पारित किया था. वहीं डाक विभाग ने पीड़ित को हर्जाना देने के बजाय लोक अदालत के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. डाक विभाग ने साल 2015 में याचिका दाखिल की थी. पिछले 7 सालों से हाईकोर्ट में यह याचिका विचाराधीन थी. सुनवाई पूरी होने के बाद जस्टिस विवेक चौधरी की सिंगल बेंच ने इस मामले में 16 नवंबर को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था. इस मामले को लेकर अदालत ने न सिर्फ डाक विभाग की याचिका को खारिज कर दिया है, बल्कि गहरी नाराजगी भी जताई है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण विभाग ने लोक अदालत के फैसले का सम्मान करने के बजाय उसे कानूनी पेचीदगियों में उलझा कर रखा. साढ़े चार हज़ार रुपये का भुगतान करने के बजाए उससे कई गुना ज्यादा की रकम अदालती लड़ाई में खर्च कर दी. डाक विभाग का यह फैसला उचित नहीं है. वैसे भी 25000 रुपये से कम के भुगतान के मामले में सेकंड अपील दाखिल नहीं की जा सकती है।