6 साल से बेटे के आस में वृद्धा आश्रम में मां की टूटी सांस, खबर पर आया लेकिन मुखाग्नि दिए बिना ही लौटा

6 वर्ष पूर्व 2 दिन में लौटने को बोल वृद्धा आश्रम को अस्पताल बताकर छोड़ गया था!

प्रखर डेस्क। आगरा में एक दिल को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। यहां एक कलयुगी बेटा छह साल पहले अपनी मां को वृद्ध आश्रम को अस्पताल बताकर छोड़ गया। बोला नोएडा में फ्लैट देखने जा रहा है। दो दिन बाद ले जाएगा। दो दिन बाद बेटे के आने इंतजार करती रही चंद्रकांता ने शनिवार को इस दुनिया से अलविदा हो गईं। बेटे आया और कागजी कार्रवाई पूरी कर तुरंत ही लौट गया। उसने मां को मुखाग्नि देना भी उचित नहीं समझा। जिला स्थित रामलाल वृद्धाश्रम में छह साल से अपने बेटे का इंतजार कर रही मां की आंखें पथरा गईं। होली पर बेटे को पुकारते हुए आखिरकार मां दुनिया से रुखसत हो गई। मां की मौत की खबर पर भी बेटे का दिल नहीं पसीजा। होली मनाने के बाद वह आश्रम आया और अंतिम संस्कार की रस्में पूरी किए बिना ही चला गया। आश्रम वालों ने बुजुर्ग माता को अंतिम विदाई दी। आश्रम में साढ़े छह साल पहले करीब 75 साल की चंद्रकांता पहुंची थीं। बेटा गुरुद्वारा गुरु का ताल के पास छोड़कर चला गया था। आश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि चंद्रकांता को कुछ लोग लेकर उनके पास आए थे। बेटे ने उनसे कहा था कि वह नोएडा में फ्लैट देखने जा रहा है। दो दिन बाद उन्हें आकर ले जाएगा। तभी से वृद्धा आश्रम में रहकर बेटे का इंतजार कर रही थी। पहलाद कुमार ने बताया कि चंद्रकांता हमेशा बेटे के आने की आस में मां हर त्योहार पर उसकी राह ताकती। आश्रम के अन्य बुजुर्गों से कहती कि मेरा बेटा जरूर आएगा। बहू ने कुछ कह दिया होगा। वह अपने बेटे के नाम की माला जपती तो आश्रम के बुजुर्ग उसे समझाते कि अगर बेटे को आना होता तो वह यूं झूठ बोलकर छोड़कर नहीं जाता। सात मार्च को होली पर भी बेटा नहीं आया तो चंद्रकांता की आंखें पथरा गईं। वह बेटे को पुकारते हुए दुनिया से चली गई। मुन्नी देवी ने बताया कि बेटा काम वाली की तरह व्यवहार करता था। परेशान होकर उन्होंने घर छोड़ दिया। आश्रम के अध्यक्ष ने बताया कि इसकी सूचना बेटे को कुछ देर बाद ही दे दी गई थी। लेकिन, बेटा होली का त्योहार मनाने के बाद नौ मार्च को अपनी पत्नी के साथ आश्रम पहुंचा। उसने कागजी कार्रवाई पूरी की और आश्रम वालों से अंतिम संस्कार करने की कहकर चला गया। उसने अपनी मां को मुखाग्नि देना तक उचित नहीं समझा। होली का त्योहार मनाकर कई लोग अपनों को आश्रम छोड़ गए। दो दिन में सात बुजुर्ग आश्रम पहुंचे हैं। शांति देवी ने बताया कि दो बेटे व तीन बेटियां हैं, मगर अपना कोई नहीं। बेटे होली से पहले आश्रम को अस्पताल बताकर दरवाजे पर छोड़ गए। प्रहलाद कुमार ने बताया कि घर में बच्चे चैन से नहीं रहने देते थे। आखिर में आश्रम की राह पकड़ी।