दोबारा किडनी ट्रांसप्लांट के बाद भी धर्मेंद्र ने नहीं मानी हार, बैडमिंटन में बने विश्व चैंपियन


प्रखर लखनऊ। मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। यह शायरी एक किडनी के बदौलत बैडमिंटन स्पर्धा में विश्व चैंपियन बने धर्मेंद्र पर एकदम सटीक बैठती है। बतादे कि नारकोटिक विभाग में कार्यरत धर्मेंद्र सूती ने ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में हुए विश्व ट्रांसप्लांट गेम्स की बैडमिंटन स्पर्धा में बेहतर प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक जीतकर बड़ा मुकाम हासिल किया है। उन्होंने 50 -59 वर्ष आयु वर्ग के एकल फाइनल में थाईलैंड के नाथोपोलो को 10- 15, 15 -10, 15 -13 से शिकस्त देकर यह मुकाम हासिल किया है। बता दें कि धर्मेंद्र उत्तर प्रदेश नारकोटिक विभाग के लखनऊ कार्यालय में सुपरिटेंडेंट पद पर कार्यरत हैं। वे एक ही किडनी पर जीवन जी रहे हैं। उन्हें किडनी उनके छोटे भाई अवधेश ने दान की है और तो और जब वह भी किडनी खराब हो गई तो फिर से किडनी उनके साले ने उन्हें दान की। उसके बाद भी वे हौसला नहीं हारे और उस मुकाम को हासिल किया जिसे अच्छे-अच्छे लोग हासिल करने में पीछे हट जाते हैं। धर्मेंद्र कहते हैं कि कभी विश्व चैंपियन बनने के सपने के बीच उनकी दोनों किडनी खराब हो गई थी। पर ट्रांसप्लांट गेम्स में अब विश्व चैंपियन बनने का सपना पूरा हो चुका। इसके पहले भी धर्मेंद्र 90 के दशक में राज्य के बेहतर खिलाड़ी भी रहे है औऱ राष्ट्रीय चैंपियन में शानदार प्रदर्शन भी किया था। धर्मेंद्र की किडनी दूसरी बार 2019 में विश्व ट्रांसप्लांट गेम्स की तैयारी के दौरान खराब हो गई थी। उसके बाद उनके साले नितिन द्विवेदी ने उन्हें किडनी दान कर उनके हौसले को बढ़ाया और उन्होंने फिर अभ्यास शुरू किया और आज इस मुकाम को हासिल किया। इसके पूर्व 2001 में उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी थी। जिसके बाद उनका बचना नामुमकिन हो चुका था। लेकिन उनके छोटे भाई अवधेश ने अपनी एक किडनी दान देकर उनको जीवनदान दिया और वह धीरे-धीरे खेल के मैदान में लौटे। 2013 में दक्षिण अफ्रीका में वह विश्व ट्रांसप्लांट गेम्स में हिस्सा लेने गए। वहां से रजत पदक जीतकर लौटे इसके बाद 2015 में विश्व ट्रांसप्लांट गेम्स में उन्होंने कमाल का प्रदर्शन करते हुए 1 स्वर्ण व रजत जीतकर इतिहास रचा।