जाली दस्तावेजों से लाभ पाने वाले को चिन्हित करना, नागरिकों का कर्म और कर्तव्य दोनों ही – दिनेश प्रसाद सिन्हा, साउथ अफ्रीका

प्रखर डेस्क। समाज में कर्म और कर्तव्य पर चर्चा बहुत होती है लेकिन क्या आप इसका पालन सही से आप हम कर रहे है? अगर सही से हो तो समाज की बडी समस्या का निदान हो सकता है । आजकल नियोक्ता और नियुक्त के विवरण को जाँचने का बहुत ही अच्छा तरीका सरकार ने बना दिया है जिससे वैधता तथा अवैधता कि जानकारी एक पल में सामने आ जाती है। यह नियोजक और नियोक्ता दोनो हेतु लाभप्रद है क्योंकि दोनों का ही विवरण सार्वजनीक होते है। इससे सरकार,कंपनियाँ, समाज तथा आमजण ठगी से तथा अपने हक का वचाव कर सकते है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगता है।
सरकार ने आज कल कई ऐसे प्लेटफार्म उपलब्ध करवा रखे है जहाँ सरकारी गैर सरकारी कंपनियाँ और आम व्यक्ति अपने अपने विवरण पंजीकृत कर दस्तावेज कि स्कैन काँपी अपलोड रखते है। ऐसा नियोक्ता तथा नियुक्ती के साथ साथ आमजण को करना जरूरी और राष्ट्रीय कर्तव्य भी है। जिसके तहत ऋण, आय, अपनी कार्य अनुभव, उपलब्धियाँ और शैक्षणिक प्रमाण पत्र उपलब्ध करवाना जरूरी है । सरकार के इस कदम से कई प्रकार के सामाजिक लाभ भी सामने आए है जिससे शुद्ध समाज के निर्माण में फायदे तो दिखते ही हैं साथ ही कम समय में बहुत सुचनाए मिल जाते है उदाहरण स्वरूप हम कह सकते हैं कि अगर कोई तथ्य या सूचना गलत दि गई हो तो कोई भी आसानी से उस गलत सूचना को सक्षम अधिकारी को दे सकता है और गलत व्यक्तियों के गलत उद्देश्य पूर्ति को रोकवा कर अच्छे समाज के निर्माण में सहयोग कर सकता है। अभी “ले ऑफ ” की सूचनाएं कंपनियों द्वारा बराबर निकल कर के आ रही है। ‘एप्पल’,
‘गूगल ‘ और ऑटोमोबाइल सेक्टर की
‘टाटा ‘और ‘महिंद्रा’ जैसी कंपनियां ने “ले आँफ” के नाम पर बड़े स्तर पर कर्मचारियों की छंटनी की है। उसके पीछे आम जनता कि समझ हैं कि रीसेसन और कांस्ट कंटींग इसके बहुत बड़ा कारण है।इसके अतरिक्त एक बहुत बडा कारण यह है कि भारत सरकार के जाँच एजेन्सियों का भय भी है। सभी कंपनियों को सरकार के मानक नियम के तहत चलना जरूरी है और उसमें कर्मचारियों की योग्यता, प्रमाण पत्र तथा उनकी दस्तावेज जाँच कर नियुक्त करना जिम्मेवारी है।ऐसा नहीं करने पर सरकारी एजेंसियां कंपनियों पर बहुत ही सख्त कार्रवाई कर रही है। इसका उदाहरण अभी बीबीसी का सामने है। इस कारण भारतीय तथा बाहरी सभी कंपनीयाँ अभी सख्त हो गई है तथा जाँच दायरे में आना नही चाहती है। ऐसा नही है कि यह नया नियम है लेकिन मोदी सरकार इस पर अभी गंभीर हो गई है। इन नियमों में कडे प्रवधान है जिसमें आर्थिक दण्ड तथा जेल तक हो सकती है।
अक्सर आप चर्चा में सुनते हैं कि फंला गलत जाति प्रमाण पत्र देकर के माननीय बन गए और पकड़े जाने पर न्यायालय ने उनकी सांसदी रद्द कर दि है।
सरकार आम जनता से अपेक्षा भी करती है कि ऐसे जो भी समाज के गलत लोग रंगा सियार बने बैठे हैं उनके खिलाफ जानकारी इकट्ठा करें और सरकार को दे।
हालांकि आरटीआई के प्रयोग से ऐसे बहुत से गलत विवरण समाज के सामने आए हैं लेकिन अन्य पोर्टल पर कि लोकप्रियता अभी उतनी नही है। लेकिन जैसे जैसे समय के साथ इसका प्रचलन बढ़ेगा वैसे वैसे गलत प्रमाण पत्र के माध्यम से लाभ लेने वालों की मुश्किले बढ़ेगी। चाहे वह कोई गलत शैक्षणिक प्रमाण पत्र पर निजी नौकरी में हो, कोई लोन लिया हो या माननीय बन बैठा हो।
सरकार सक्षम प्लेटफार्मो जैसे अखवार, चैनल तथा सोशल मिडियापर ऐसी लगातार अपील सूचना देकर गलत व्यक्तियों के विवरण देने का अनुरोध कर रही है। सरकार तो कर ही रही है हमें भी अपनी कर्म और कर्तव्य को तो करना ही चाहिए एक मंथन अवश्य करें।