उत्तर प्रदेश में तदर्थ शिक्षकों की सेवा समाप्त करना भाजपा की हार का बना प्रमुख कारण?


पीड़ित तदर्थ शिक्षक की व्यथित कलम से

लोकसभा चुनाव 2024 के उत्तर प्रदेश के परिणामों की घोषणा के पश्चात मुख्यमंत्री योगी बाबा का चेहरा उतरा-उतरा सा है जो अधिकारी भाजपा को 80 में से 80 सीटें जितवा रहे थे वे सब महाराज जी से मुंह छुपाये फिर रहे हैं।एक तरफ जनता महराज जी को नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी घोषित कर चुकी थी तो दूसरी तरफ योगी जी की बढ़ती लोकप्रियता कतिपय नेताओं व अधिकारियों को रास नहीं आ रहा था, उन्हें नीचा दिखाने के उद्देश्य से ही उनके विरुद्ध बड़ा षड़यंत्र रचा जा रहा था परन्तु बाबा जी इन सब से बेखबर विश्वस्त अधिकारियों द्वारा लाये जा रहे जन विरोधी विमर्शों को भी आंख मूंदकर अनुमोदन दे रहे थे और ऊपर से इन अधिकारियों ने बाबा जी की ऐसी छवि भी गढ़ दी थी कि जनप्रतिनिधियों को भी जन विरोधी विमर्शों का विरोध करने का साहस नहीँ हो पा रहा था। परिणाम क्या? निकला।आज महराज जी का आंसू पोछने वाला कोई नहीँ मिल रहा है।जयशंकर प्रसाद की पंक्ति कितना प्रासंगिक है-“अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है।अपने को नियामक और कर्ता समझने की बलवती स्पृहा उससे बेगार कराती है” अधिकारियों द्वारा गढ़ी गई छवि से बाबा जी जब तक बाहर नहीँ निकलेंगे और जन सरोकार से जुड़े मुद्दों पर अधिकारियों के बजाय स्वंय निर्णय नहीँ लेगें तब तक उनके लोकप्रियता को यूँ ही बट्टा लगता रहेगा।बाबा जी को शीघ्रातिशीघ्र ऐसे नेताओं, नौकरशाहों व अधिकारियों को चिन्हित करना होगा जो कि व्यवस्था के लिए दीमक का कार्य कर रहे है।बाबा जी अपने परिश्रम के बूते जो छबि बनायी थी उसे धूमिल करने का कुत्सित प्रयास उनके प्रथम मुख्य मंत्रित्वकाल में ही शुरू हो चुका था।उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने का मंसूबा पाले उनके धुर विरोधी रहे पूर्व उप मुख्यमंत्री व माध्यमिक शिक्षा मंत्री दिनेश शर्मा एक शिक्षक होने के नातेअच्छी तरह से पता था कि शिक्षकों की जनमत निर्माण में अहम भूमिका होती है और यदि इन शिक्षकों को बाबा सरकार के विरुद्ध भड़का दिया जाय तो बाबा के सरकार का पतन सुनिश्चित है।शिक्षक की बेबाकी ही उसकी पहचान है शिक्षक जन सरोकार से जुड़े मुद्दों पर बिना डरे अपनी बात रखता है तभी तो विधान परिषद के स्थापना काल से ही शिक्षकों के लिए ही विशेष सीटें निर्धारित की गई थी परन्तु राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिएआकांक्षी मुख्यमंत्री की सलाह पर ही शिक्षकों की आवाज दबाने के लिए ही ये सीटें भी शिक्षक संगठनों से छीन कर राजनैतिक बना दिया गया। शिक्षक विरोधी कृत्य करने वालों का क्या हश्र होता है उसका ज्वलंत उदाहरण वीर बहादुर सिंह, कल्याण सिंह,रविन्द्र शुक्ला एवं स्वंय शर्मा जी हैं। योगी सरकार की छबि धूमिल करने के उद्देश्य से ही आकांक्षी मुख्यमंत्री ने षडयंत्र के तहत प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में वर्ष 2000 के बाद नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की सेवा संजय सिंह बनाम उ०प्र०राज्य व अन्य में आये सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के क्रम में समाप्त कर दिया जबकि सरकार चाहती तो तदर्थवाद समाप्त करने के लिए राज्य विधानमंडल से पूर्व की भांति अधिनियम में संशोधन कर वर्ष 2000 के बाद नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की भी सेवा विनियमित कर सकती थी।परन्तु शर्मा जी ने तदर्थ शिक्षकों की सेवा विनियमित न कर सेवा समाप्ति का निर्णय लिया जिसका परिणाम हुआ कि वर्ष 2000 के बाद नियुक्त 2500 तदर्थ शिक्षकों के घरों के चूल्हे बुझ गये।भविष्य अंधकारमय हो गया।मोदी का परिवार बनना बेकार गया। आजीविका पर निर्भर माता-पिता की दवाई,बच्चों की पढ़ाई और मकान के लोन की ईएमआई गले की फांस बन गयी।अचानक परिवार सड़क पर आ गया और योग्य होते हुए भी फर्जी होने का विमर्श भी गढ़ा गया।यदि ये फर्जी थे तो इन्हें नियुक्त करने वाले प्रबंधकों एवं अधिकारियों को दण्डित क्यों नहीँ किया जा रहा है ।बाबा जी वास्तव मेँ यदि इसके तह में जायें तो जो अधिकारी फर्जी का विमर्श चला रहे हैं वो ही इसके जिम्मेवार निकलेंगे।कहा तो यह भी जाता है कि तदर्थ शिक्षकों की सेवा समाप्त करने से आकांक्षी मुख्यमंत्री इतना डर गये थे कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव लड़ने का साहस नहीँ जुटा सके। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमन्त्री ने वर्ष 2000 के बाद नियुक्त सभी तदर्थ शिक्षकों के सेवा के संबंध में सम्मानजनक निर्णय लेने का आश्वासन दिया था।एक बार फिर से जब वर्ष 2022 में बाबा जी की सरकार बनी तो वर्ष 2000 के बाद के नियुक्त तदर्थ शिक्षकों में एक आस जगी कि महराज जी इस संबंध में जरूर कोई न कोई सम्मानजनक रास्ता निकालेंगे लेकिन सम्मानजनक रास्ता के नाम पर वर्ष 2000 के बाद के नियुक्त तदर्थ शिक्षकों के साथ-साथ वर्ष 2000 के पूर्व के नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की भी सेवा सरकार ने यह कहते हुए समाप्त कर दी कि सभी तदर्थ शिक्षकों पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय समान रूप से लागू होता है जबकि राघवेन्द्र पाण्डेय बनाम उ० प्र०राज्य व अन्य में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना है कि संजय सिंह बनाम उ०प्र०राज्य व अन्य में पारित सर्वोच्च न्यायालय का आदेश वर्ष 2000 के बाद के तदर्थ शिक्षकों पर ही लागू होता है इसी निर्णय के आधार पर गोरखपुर मण्डल के जे०डी० ने 9/11के बाद विनियमतीकरण किया।आकांक्षी मुख्यमंत्री के कार्यकाल में उनकी अति विश्वस्त अपर मुख्य सचिव आराधना शुक्ला के कोर कमेटी के सदस्यों जिसमें वर्तमान संयुक्त शिक्षा निदेशक वाराणसी मण्डल वाराणसी रामशरण सिंह प्रमुख हैं के साथ-साथ प्रयागराज मंडल के संयुक्त शिक्षा निदेशक दिव्यकांत शुक्ला व लखनऊ मंडल के संयुक्त शिक्षा निदेशक प्रदीप सिंह सहित अन्य अधिकारियों ने ठीक लोकसभा चुनाव के पूर्व षड़यंत्र के तहत महराज जी की छबि धूमिल करने के उद्देश्य से ही वर्तमान अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार जी को यह समझाने में सफल हो गये कि7अगस्त1993 के बाद नियुक्त हुए सभी तदर्थ शिक्षक एक जैसे हैं और उन पर सर्वोच्च न्यायालय का तदर्थवाद समाप्त करने का आदेश समान रूप से लागू होता है।यहीं योगी बाबा से चूक हो गई।आकांक्षी मुख्यमंत्री की कोर टीम अपने उद्देश्यों में सफल हो गयी। हिन्दुत्व की ध्वज पताका फहराने वाली सरकार उनके सबसे पावन पर्व धनतेरस की पूर्व संध्या पर अपर मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से पत्र निर्गत कर दि 07/08/1993 से 30/12/2000 के मध्य विधिमान्य तरीके से नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति अधिनियम की धारा 33(छ) से आच्छादित होते हुए भी समाप्त कर दी जब कि समान तरीके से नियुक्त लगभग 1260 तदर्थ शिक्षकों का विनियमतीकरण इसी अधिनियम की धारा 33(छ) में किया गया है।लोकसभा चुनाव के ठीक पूर्व वर्ष 2000 के पूर्व नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की सेवा भी अनैतिक तरीके से समाप्त किये जाने के निर्णय से आहत शिक्षकों की आवाज बाबा जी तक न पहुँचे, आकांक्षी मुख्यमंत्री के कोर टीम के सदस्यों ने धरना-प्रदर्शन पर भी प्रतिबंध लगवा दिया।महराज जी के निर्णय से निराश शिक्षक माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद एवं लखनऊ खण्डपीठ की ओर रूख किया।माननीय उच्च न्यायालय ने दि०09/11/2023 के शासनादेश को निरस्त करते हुए सेवा बहाली व वेतन देने की बात कही परन्तु आकांक्षी मुख्यमंत्री की कोर टीम ने मा०न्यायालय के आदेश का अनुपालन न कर निर्णय के विरुद्ध स्पेशल अपील दायर की जिसे भी मा० उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।शिक्षकों में असंतोष की भावना बढ़ाने के उद्देश्य से ही आकांक्षी मुख्यमंत्री की कोर टीम के प्रमुख सदस्यों अर्थात् वर्तमान संयुक्त शिक्षा निदेशकों ने जिला विद्यालय निरीक्षकों के माध्यम से शिक्षकों के विनियमतीकरण से संबंधित पत्रावलियों को मंगाकर बिना परीक्षण किये ही विनियमतीकरण के दावे को एकमुश्त में खारिज करना शुरू किया ताकि मा० उच्च न्यायालय में 09/11/2023 के शासनादेश को जायज ठहराया जा सके।क्षेत्रीय चयन समिति द्वारा विनियमतीकरण निरस्त किये जाने के निर्णय के विरुद्ध मा०उच्च न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश तथा सेवा बहाली एवं वेतन भुगतान के आदेश को भी बाबा के अहंकारी एवं हठधर्मी अधिकारियों ने बाबा जी के प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया।राघवेन्द्र पाण्डेय बनाम उ०प्र० राज्य व अन्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय कि संजय सिंह बनाम उ०प्र०राज्य व अन्य में पारित आदेश वर्ष 2000 के बाद नियुक्त हुए तदर्थ शिक्षकों के लिए ही है जानते हुए भी मा०उच्च न्यायालय इलाहाबाद के पारित आदेश के विरूद्ध अपील की ताकि लोकसभा चुनाव तक असंतोष बरकरार रह सके। मा०उच्च न्यायालय के पारित आदेश के अवहेलना का बुखार आकांक्षी मुख्यमंत्री के कोर टीम के प्रमुख सदस्य रहे संयुक्त शिक्षा निदेशक वाराणसी मण्डल वाराणसी रामशरण सिंह पर ऐसा चढ़ा कि 7अगस्त1993 के पूर्व के नियुक्त काशी प्रांत के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यवाह जो कि इसी वर्ष 31/03/2024 को सेवानिवृत्त हुए हैं के साथ-साथ चन्दौली जिले के संघ व संगठन से जुड़े भाजपा पदाधिकारी जिनकी नियुक्ति भी 7अगस्त 1993 के पहले हुई थी का भी वेतन अवरूद्ध कर सेवा समाप्त कर दिया जबकि इसी वाराणसी मण्डल में 7अगस्त1993 के पूर्व नियुक्त अन्य किसी भी तदर्थ शिक्षक का न तो वेतन अवरूद्ध किया गया है और न हीं सेवा समाप्त किया गया है।प्रकरण अति गम्भीर है व जांच का विषय भी है कि काशी प्रांत के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यवाह व प्रांत के संघ व संगठन से जुड़े अन्य पदाधिकारियों का वेतन अवरूद्ध कर सेवा किसके इशारे पर समाप्त किया गया व उसकी मंशा क्या थी?काशी प्रांत के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कार्यवाह का अनैतिक तरीके से सेवा समाप्त करना भाजपा को कितना महंगा पड़ा? सबके सामने है। संयुक्त शिक्षा निदेशक वाराणसी मण्डल वाराणसी रामशरण सिंह के इस अनैतिक कृत्य का संघ एवं संगठन के स्तर पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई जिसका असर अवध,काशी एवं गोरक्ष प्रान्त स्थित लोकसभा क्षेत्रों पर पड़ा। विपक्ष जनता में यह संदेश पहुँचाने में सफल हो गया कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित अधिनियम से प्राप्त मौलिक अधिकार को जब बाबा की सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यवाह व अन्य पदाधिकारियों से छीन सकती है तो आमजन का क्या हश्र होगा?तदर्थ शिक्षकों ने मा०उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन सुनिश्चित कराने हेतु जिन-जिन माननीयों के चौखट पर मत्था टेका और निवेदन किया कि बेलगाम अधिकारियों के ऐसे कृत्यों को बाबा जी तक पहुँचाये लेकिन वे सत्ता के नशे में इतना चूर थे कि बजाय बाबा जी तक बात पहुंचाने के उनको टरकाते रहे।जनता ने उनको ऐसा टरकाया कि आने वाली उनकी कई पीढ़ियाॅ अपनी राजनैतिक राह मुश्किल कर आमजन से लेकर धुर विरोधी तक की यही धारणा रहती है कि भाजपा की रीति-नीति में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की भूमिका चुनावी रणनीति बनाने से लेकर मतदाता को मतदान केन्द्र तक पहुंचाने मेंअहम होती है।बाबा जी लोकसभा चुनाव को क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत,विधान परिषद् का चुनाव समझ बैठे जिसे संघ व उसके अनुषांगिक संगठनों के बजाय अधिकारियों के भरोसे लड़ा।नतीजा सर्वविदित है। मध्य सत्र में छात्रों की हितों की चिंता किये बिना तदर्थ शिक्षकों की सेवा समाप्त करना,मा०उच्च न्यायालय के सेवा बहाली व वेतन भुगतान के आदेश के बावजूद उसका अनुपालन न करना विपक्षियों को अबकी बार 400 पार से बाबा साहब के संविधान को बदलने के विमर्श को गढ़ने में मददगार साबित हुआ। भाजपा वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव अपने संगठन और कार्यकर्ताओं के नैतिक चरित्र, आचरण पर जीतने का काम किया।2019 में भाजपा नरेन्द्र मोदी जी के कार्यप्रणाली तथा विकसित भारत के सपनों के बल पर जीतने का काम किया, लेकिन 2024 में बाबा जी ने संघ व संगठन से ज्यादा अधिकारियों के भरोसे पर अहंकार और घमंड में चुनाव लड़ने का काम किया।बाबा जी को संघ व संगठन की रीति-नीति पता नहीँ है उनकी इसी कमजोरी का लाभ उ०प्र०के नौकरशाह उठा रहे हैं तथा हमेशा संघ व संगठन की नकारात्मक छवि उनके सम्मुख प्रस्तुत करते रहते हैं।आखिर कब तक? कार्यकर्ता,मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व पर जनता से वोट मांगेगा जबकि अधिकारियों ने उनकी स्वयं की हैसियत को बोनसाई सा बना दिया।जन विरोधी कृत्यों के खिलाफ आवाज उठाने वाले अपनी पार्टी के ही जनप्रतिनिधि ,संगठन के कार्यकर्ताओं को सरकार विरोधी घोषित कर उनके अन्दर बुलडोजर का खौफ पैदा करना भाजपा के रीति-नीति का कभी भी हिस्सा नहीँ रहा। नरेन्द्र मोदी जी का नेतृत्व, विचार, आचरण, संस्कार और कार्यप्रणाली अभी भी प्रदेश की जनता की पहली पसंद हैं परन्तु बाबा के निरंकुश एवं तानाशाह अधिकारियों के आमजन एवं शिक्षकों के प्रति उपेक्षात्मक व्यवहार व उन पर दबदबा बनाने की कोशिश जनता को रास नहीं आ रही है।मा०उच्च न्यायालय इलाहाबाद में तदर्थ शिक्षकों के सेवा समाप्ति के विरुद्ध योजित याचिकाओं में सरकार की तरफ से महाधिवक्ता द्वितीय श्री नीरज त्रिपाठी की आत्मा से पूछिए कि जनविरोधी कृत्यों को जायज ठहराना इलाहाबाद लोकसभा सीट से भाजपा व उनके चुनाव हारने का कैसे कारण बना। उत्तर प्रदेश की जनता को आज भी नरेंद्र मोदी जी,योगी जी का नेतृत्व पसंद हैं, लेकिन उनकी आड़ में अगर उनके बेलगाम अधिकारी मा०उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश की अवहेलना कर वर्ष 2000 के पूर्व विधिमान्य तरीके से नियुक्त तदर्थ शिक्षकों को भूखों मारने का कार्य करेंगे तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। माननीय मुख्यमंत्री जी को भी पार्टी हित में, संगठन की भलाई के लिए हठधर्मिता को छोड़कर शिक्षकों के बहाली व वेतन भुगतान हेतु मा०उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का अनुपालन अविलम्ब अधिकारियों से सुनिश्चित करने तथा भाजपा एवं संघ के कार्यकर्ताओं को महत्व देने हेतु आदेशित करना चाहिए, इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। शिक्षक समाज का दर्पण होता है, जनमत निर्माण में अहम भूमिका होती है तथा कार्यकर्ता पार्टी का रीढ़ होता हैं।यह आलोचना नहीं बल्कि सुझाव है,इसलिए इस पर योगी बाबा को हठधर्मिता छोड़ ठंडे दिमाग से अवश्य विचार करना चाहिए।

लेखक- सतीश कुमार सिंह (प्रवक्ता, भौतिक विज्ञान) जनता इंटर कालेज रतनूपुर जाैनपुर