करवरिया भाइयों के आसरे केशव के साथ ब्राह्मण वोट बैंक पर निशाना

प्रखर डेस्क। अब के प्रयागराज तब के इलाहाबाद में करीब 28 साल पहले एके-47 से पहली बार
समाजवादी पार्टी के तत्कालीन विधायक जवाहर पंडित की हत्या को दिनदहाड़े अंजाम दिया गया था। इस मामले में बीजेपी के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। ग़ौरतलब है कि प्रयागराज की झूंसी विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर विधायक चुने गए जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित और उनके दो सिक्योरिटी गार्ड्स समेत 13 अगस्त 1996 को सिविल लाइंस में दिनदहाड़े कत्ल कर दिया गया था। हत्या के बाद जवाहर पंडित के परिवार वालों की शिकायत पर पुलिस ने इलाहाबाद के रसूखदार करवरिया परिवार के पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इस ट्रिपल मर्डर केस की जांच पहले यूपी पुलिस ने की, बाद में तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के दखल पर जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गईं। सीबीसीआईडी ने करीब
आठ साल बाद जांच पूरी कर साल 2004 में जो चार्जशीट दाखिल की, उसमे करवरिया बंधुओं समेत सभी पांच नामजद आरोपियों के नाम शामिल थे। इस मामले में करवरिया बंधू पिछले करीब दस सालों से जेल में बंद हैं। इस करवरिया परिवार के तीन सदस्य बाद में जनप्रतिनिधि चुने गए। इनमें सबसे बड़े भाई कपिलमुनि करवरिया साल 2009 में बीएसपी के टिकट पर फूलपुर के सांसद बने तो छोटे भाई उदयभान 2002 और 2007 में दो बार बीजेपी के टिकट पर इलाहाबाद की बारां सीट से विधायक चुने गए। मझले भाई सूरजभान करवरिया भी बीएसपी से यूपी विधान परिषद के सदस्य रहे। अब लोक सभा चुनावों में बीजेपी के खिसकते वोट बैंक और पार्टी में अंदरखाने की राजनीति को एक साथ साधते हुए योगी सरकार की पैरवी पर सूबे की गवर्नर आनंदीबेन पटेल ने बीजेपी नेता और पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की बची हुई सजा को माफ कर दिया हैऔर उनकी रिहाई का आदेश जारी कर दिया है। योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए जवाहर पंडित की पत्नी और समाजवादी पार्टी से चौथी बार विधायक विजमा यादव ने कहा है कि हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए अपराधी की सजा को माफ कर योगी सरकार ने अपना चरित्र उजागर कर दिया है


*इलाहाबाद, फूलपुर और कौशांबी लोकसभा में है अच्छा खासा प्रभाव*
उदयभान करवरिया की पहचान बाहुबली ब्राह्मण चेहरे के रूप में
होती रही है। भाजपा के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की रिहाई से तमाम राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। राजनीतिक रूप से प्रदेश में इस समय जो उठा पटक का दौर चल रहा है जिसमें योगी सरकार के एक उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य लखनऊ में कैबिनेट मीटिंगों के बीच दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं और दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक लगातार सरकार के फैसलों के खिलाफ बयान बाजी कर रहे हैं इन सब के बीच योगी आदित्यनाथ अचानक एक दिन राज्यपाल आनंदीबेन से मुलाकात करते हैं जिसके राजनीतिक पंडितों द्वारा कई तरह के प्रयास लगाए जा रहे थे। लेकिन अगले दिन जब उदयभान करवरिया के रिहाई का आदेश जारी हुआ तो राजनीतिक पंडितों के सारे समीकरण धरे के धरे रह गए। माना जा रहा है कि योगी सरकार का यह फैसला बीजेपी से नाराज ब्राह्मण वोट बैंक के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के प्रभाव वाले इलाकों में करवरिया बंधुओं की लोकप्रियता को साधने का एक मजबूत प्रयास है। इलाहाबाद, फूलपुर, कौशांबी लोकसभा क्षेत्रों में करवरिया बन्धुओं की अपनी एक अलग पहचान और साख अभी भी बनी बनी हुई है। तमाम राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के बीच उनकी उपस्थिती इस बात का प्रमाण रहा है कि भले ही बालू के ठेकों को लेकर बीजमा यादव के पति जवाहर यादव और करवरिया बन्धुओं के बीच अदावत चलती रही हो और इस जघन्य हत्या कांड को अंजाम दिया गया हो लेकिन ब्राह्मण समाज में करवरिया बन्धुओं को अलग नजरिए से देखा जाता है खासकर ब्राह्मणों के बीच एक बाहुबली ब्राह्मण नेता को इस तरह से सरकार का समर्थन मिलना बड़ा राजनीतिक इशारा है