प्रखर डेस्क। उत्तर प्रदेश सरकार ने बेसिक शिक्षा में अध्यापकों की उपस्थिति के लिए ऑनलाइन हाजिरी की व्यवस्था की थी जिसके लिए प्रदेश भर के तमाम विद्यालयों पर अध्यापकों की उपस्थिति को दर्ज करने के लिए टेंडर के द्वारा करीब 300 करोड़ के हैंडसेट और उसके कनेक्शन की व्यवस्था की गई थी । अध्यापकों के विरोध को देखते हुए सरकार ने इस फैसले से फिलहाल अपना कदम वापस खींच लिया है । अब सवाल यह खड़ा होता है कि जिस कार्य के लिए प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने 300 करोड़ के हैंडसेट मंगा लिए थे आखिर उसे अमली जामा पहनाने की तैयारी पहले से क्यों नहीं की गई थी। सरकारी खजाने का इस तरह खुलेआल बंदरबांट प्रदेश सरकार में काम करने वाले अधिकारी और बाबुओं की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े करने के लिए काफी है। गौरतलब है कि मौजूदा सत्र से सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापकों की उपस्थिति की गणना सुचितापूर्ण तरीके से करने के लिए सरकार ने ऑनलाइन हाजिरी की व्यवस्था की थी जिसके लिए जिसके लिए वाई-फाई के साथ हैंडसेट की व्यवस्था की गई थी ताकि अध्यापकों की ऑनलाइन हाजिरी को पूर्ण किया जा सके और अध्यापकों के आवाजाही की मनमानी पर रोक लगाया जा सके। अध्यापकों के विरोध के कारण सरकार ने अपने कदम वापस खींच लिए और अब सवाल या खड़ा होता है कि आखिर 300 करोड रुपए से खरीदे गए इन हैंडसेटों का उपयोग सरकार अब कहां करेगी ।
विभिन्न जनपदों में बेसिक शिक्षा विभाग के पास हजारों की संख्या में हैंडसेट पड़े हुए हैं,जिनके रखरखाव की कोई व्यवस्था पहले से नहीं की गई है ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को किस तरह से सहेज कर आगे इस्तेमाल किया जा सकता है यह प्रदेश सरकार के लिए बड़ा सवाल है कि सरकार के अधिकारियों ने बिना पूर्व में कोई रणनीति बनाए इस तरह की योजना को आखिर कैसे लागू करना है नहीं होने की स्थिती में इन उपकरणों का प्रयोग कहां किया जाएगा। आनलाईन हाजिरी को इस तरह से सिर्फ अध्यापकों के ऊपर ठोकना और उसे जबरिया पूरा करने का प्रयास करना और फिर सीधे पूरी तरह से कदम पीछे खींच लेना अपने आप में भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण हो सकता है ।
अब जिन अधिकारियों ने इन हैंडसेटों की खरीद में भूमिका निभाई है क्या उन्हें पहले से या पूर्वानुमान नहीं था कि आखिरकार शिक्षक उनके इस आदेश का पालन क्यों करेगा, जबकि सरकार के सारे विभागों के कर्मचारियों की स्थिति एक सी है । लेटलतीफी, गैर हाजिरी सरकारी कार्यालयों का एक स्वभाव बना रहता है ऐसे में सिर्फ शिक्षकों को ही ऑनलाइन हाजिरी के लिए विवश करना कहां तक न्याय संगत है।