गुरुजी, बच्चों को डांटे – फटकारे तो खैर नहीं, शासनादेश जारी
प्रखर डेस्क। कहते हैं जिसने नहीं खाई गुरु की छड़ी, उसकी कभी नहीं बदली घड़ी । अर्थात जिसने पढ़ते समय अपने गुरुओं की डांट फटकार और सजा को स्वीकार नहीं किया उसका समय कभी नहीं बदला । लेकिन बदलते कालखंड में अब सरकारी शिक्षकों पर तमाम तरह की पाबंदी से लगाते जा रही है। जिसका असर समाज पर भी बहुत गहरा पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार के नए शासनादेश से या स्पष्ट है कि शिक्षकों को सिर्फ और सिर्फ बच्चों को किताबी शिक्षा ही देनी है। उन्हें नैतिक शिक्षा और डाटने- फटकारने और सजा देने का कोई अधिकार नहीं है। महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा ने सभी बीएसए को निर्देश दिया है नए सत्र से परिषदीय विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों किसी प्रकार से शारीरिक और मानसिक दंड न दिया जाए। शारीरिक दंड के विरोध में बच्चों को अपनी बात कहने का अधिकार है। हर स्कूल जहां पर छात्रावास हैं बाल संरक्षण में रह रहे हैं वहां पर एक फोरम बनाया जाए जहां बच्चे अपनी बात रख सकेगें। स्कूल में कंप्लेंट बॉक्स बनाए जाएंगे जहां बच्चे कंप्लेंट कर सकेंगे।नए बेसिक सत्र को लेकर शिक्षा विभाग की ओर इस पर विस्तार से दिशा निर्देश जारी कर दिए गए है नियमों के मुताबिक स्कूलों में बच्चों को फटकारना, परिसर में दौड़ाना, चिकोटी काटने, चांटा मारना, घुटनों के बल बैठाना, क्लास रूम में अकेले बंद करना जैसी सजाओं को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है।