जहां फूलन देवी से लेकर मलखान सिंह तक नवाते थे माथा,चंबल के बीहड़ों में लगता है जयकारा
प्रखर डेस्क। चंबल का नाम सुनकर एक समय बड़े बड़े सुरमा पसीने छोड़ देते थे। वक्त के साथ चंबल की पहचान भी बदलती गई। बुंदेलखंड के जिन जिलों में कभी दस्युओं का खौफ रहता था। आज वहां पर देवी माता के नाम के जयकारे गूंज रहे हैं। बुंदेलखंड के जंगलों में माता का एक मंदिर है । इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि इसे द्वापर युग में पांडवों के द्वारा स्थापित किया गया था। इसी मंदिर में डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय, अरविन्द गुर्जर समेत अपने समय के सभी दुर्दांत डकैत गुपचुप तरीके से माथा टेकने आते थे। इन कुख्यात डैकैतों ने कभी भी माता के भक्तों को नुकसान नहीं पहुंचाया।दरअसल, बुंदेलखंड के कई जिलों में दस्युओं के आतंक के किस्से गूंजते रहे। यमुना और चम्बल नदियों के बीहड़ों में डाकू अपना अड्डा बनाते थे और फिर वहीं से अपनी दहशतगर्दी फैलाया करते थे। बीहड़ में बसा यह मंदिर दस्युओं के लिए बड़ा आस्था का केंद्र रहा है। बताते हैं कि बीहड़ में जिस डकैत ने भी अड्डा बनाया हो उसकी विशेषता रही है कि वह जालौन वाली माता के मंदिर में दर्शन करने के साथ ही अपनी मनौती के लिए घंटे भी चढ़ाता था। फूलन देवी से लेकर मलखान,फक्कड़ और पहलवान जैसे दर्जनों कुख्यात डकैत इस मंदिर में आकर अपना सिर झुकाते थे। डकैतों के आत्मसमर्पण के साथ एसटीएफ और पुलिस एनकाउंटर के बाद दस्यु प्रभावित यह इलाका अब पूरी तरह से डकैतों के आतंक से मुक्त हो चुका है। डाकुओं के खात्मे के बाद अब यहां नवरात्र पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। पहले नवरात्र के मौके पर डाकू भी अपनी आराध्य देवी की पूजा अर्चना किया करते थे। फिलहाल, यह इलाका पूरी तरह से शांत हो गया है माता के मंदिर की प्रसिद्धि अब और दूर दूर तक फैल गई है। अब दूर-दराज क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं।