हिंदी पर बवाल क्यों! केंद्र और दक्षिण के राज्यों के बीच क्यों है भाषा का बवाल??
प्रखर डेस्क। हिंदी का विरोध दक्षिण के राज्य हमेशा से करते आ रहे हैं। इस बार तमिलनाडु सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राज्य में ये कहकर लागू नहीं किया है कि ये उन लोगों पर हिंदी थोपने की कोशिश जैसा है। केंद्र में एनडीए की सरकार है। उसके मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध एम के स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार का हमेशा से रहा है क्योंकि इस बार इंडिया गठबंधन के सहयोगी रहे स्टालिन भाषा के नाम पर विरोध में हैं। उनका कहना है कि उनके राज्य के स्कूलों में दो भाषाओं की नीति है और वो दो भाषाएं तमिल और अंग्रेज़ी हैं। गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तीन भाषाओं की नीति है जिसमें तमिल, अंग्रेज़ी और कोई एक अन्य भारतीय भाषा की पढ़ाई शामिल है जिसमें हिन्दी भी एक भाषा है। जबकि इस नीति में स्पष्ट तौर पर ये नहीं कहा गया है कि ये तीसरी भाषा हिंदी ही होनी चाहिए, ये कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है। इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने ये भी कह दिया कि प्रस्तावित जनगणना के बाद जब लोकसभा सीटों का डिलिमिटेशन यानी परिसीमन होगा तो, अगर उसका एक मात्र आधार जनसंख्या हुआ तो दक्षिण भारतीय राज्यों को सीटों का नुक़सान होगा क्योंकि ज़्यादा जनसंख्या होने के चलते उत्तर भारतीय राज्यों को लोकसभा सीटों में फ़ायदा होगा। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसी हफ़्ते भरोसा दिलाया कि दक्षिण भारतीय राज्यों को परिसीमन में किसी तरह का नुक़सान नहीं होगा। ऐसे में सवाल ये हैं कि केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच का ये विवाद क्या और बढ़ सकता है, क्या ये भाषा का मुद्दा सरकारों का मुद्दा है या ये आम लोगों की भी चिंता है, क्या ग्लोबलाइज़्ड दुनिया में अपनी भाषा और अंग्रेज़ी के अलावा तीसरी भाषा की ज़रूरत है, परिसीमन क्या वास्तव में दक्षिण भारत को सत्ता की भागीदारी में नुक़सान पहुंचाएगा? सारा मामला राजनीतिक है मौजूदा समय में बढ़ रहे शहरी विकास में हिंदी का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। गौरतलब है कि सनातन में संस्कृत भाषा और उसके आसपास की भाषाओं में दक्षिण के राज्यों की सभी भाषाएं लिपि के इतर एक हैं जिनमें हिंदी भी शामिल है। पूरा विपक्ष जनता है कि हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी का वर्चस्व स्थापित हो गया है लिहाजा दक्षिण भारत में क्षेत्रीय दल नहीं चाहते हैं कि यहां हिंदी भाषा का विस्तार हो उन्हें डर है कि हिंदी की आड़ में बीजेपी अपना एजेंडा थोपना चाहती है ।