राणा सांगा विवाद के पीछे की सियासी चाल विपक्ष क्यों चाहता है जातीय बवाल!!
प्रखर डेस्क। भारतीय राजनीति में धर्म और जाति दो बड़े ध्रुव रहे हैं, जिनके इर्द-गिर्द सियासी समीकरण बनते और बिगड़ते रहे हैं। हाल ही में समाजवादी पार्टी (सपा) नेता रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा पर की गई टिप्पणी ने एक नई बहस को जन्म दिया है। यह सिर्फ एक ऐतिहासिक विवाद नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में जातीय विमर्श बनाम धार्मिक ध्रुवीकरण की लड़ाई का हिस्सा है। सवाल यह है कि क्या विपक्षी दल, विशेषकर समाजवादी पार्टी, बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति की काट जातीय राजनीति से खोज रही है और बार-बार जातीयता के मुद्दों को उभार कर खुद को चर्चा में बनाए रखने में सफल दिखाई दे रही है। सपा सांसद ने जब यह कहा कि राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था, तो बीजेपी और राजपूत संगठनों ने इसे हिंदुत्व और वीरता पर हमला करार दिया। यह बयान महज इतिहास की व्याख्या नहीं बल्कि सपा की एक रणनीति का हिस्सा लगता है। सपा लगातार पिछड़ा और दलित वर्ग को एकजुट करने के लिए जातीय मुद्दों को उठाती रही है। जब हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण तेज होता है, तो विपक्ष जातीय पहचान के आधार पर एक नया ध्रुव बनाने की कोशिश करता है। गौरतलब है कि बीजेपी का राजनीतिक आधार मुख्य रूप से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर टिका हुआ है, जो जातियों से ऊपर धार्मिक एकता की बात करता है। वहीं, विपक्षी दलों, विशेष रूप से सपा और राजद जैसी पार्टियों की राजनीति मंडलवादी सोच पर आधारित है, जो जातियों के आरक्षण और उनके सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण की बात करती है। जब भी कोई चुनाव करीब आता है, तो बीजेपी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे को केंद्र में रखती है, जबकि विपक्ष पिछड़े, दलितों और अल्पसंख्यकों को लामबंद करने के लिए जातीय मुद्दे उठाता है। बीजेपी की राजनीति को धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण का आरोप लगाने वाले विपक्ष के पास इसकी काट सिर्फ और सिर्फ जातीय उन्माद की गणित है। मौजदा हिंदुत्ववादी राजनीति के नायक हैं योगी आदित्यनाथ जिनकी राजनीतिक सोच में मुखर हिंदुत्व इतना बड़ा हथियार है जिसे योगी फ्रंट- फुट खेलते हैं। जिन के सामने विपक्ष बार – बार अपने जातीय उन्माद की चाल हारता जा रहा है। ऐसे में इस तरह के मुद्दे यहां की सियासत में बार बार उछलते रहेंगे।