असि नदी को नदी बनाने की तैयारी, 5000 भवनों पर चलेगा बुलडोजर

1 जुलाई से 8 जुलाई तक चलेगा अतिक्रमण अभियान

प्रखर वाराणसी। “1680 असि गंग के तीर श्रवण शुक्ल की सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर” यह दोहा तो सभी ने सुना और पढ़ा भी होगा। तुलसीदास जी का लिखा हुआ है, तुलसीदास जी ने असि नदी के किनारे ही अपना शरीर त्यागा था। लेकिन आज वह असि अपने अस्तित्व पर रो रही है। असि नदी के कारण ही वाराणसी का नाम पड़ा। बता दें कि वरुणा नदी असी में आकर मिलती है, इसीलिए बनारस का नाम वाराणसी पड़ गया। बताते चलें कि नदी का उद्गम स्थल कंदवा है। यह नदी कंदवा से शुरू होकर चितईपुर, करोंदी, कर्मजीतपुर, नेवादा, सरायनंदन, नरिया, साकेतनगर, भदैनी और नगवा से होकर गंगा में मिलती हैं। उद्गम स्थल से गंगा तक की कुल दूरी 8 किलोमीटर है। अभिलेखों में असि नदी की चौड़ाई 200 मीटर बताई गई है। अतिक्रमण के वजह से असि नदी की चौड़ाई सिर्फ फीट में सिमट कर रह चुकी है। अब इसको लेकर जिलाधिकारी का आदेश हुआ है कि असि नदी के किनारे 5000 अवैध अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाया जाएगा। इसकी कवायद 1 जुलाई से शुरू की जाएगी। 1 जुलाई से शुरू होकर 8 जुलाई तक असि नदी के किनारे हुए अतिक्रमण पर सरकार का बुलडोजर चलेगा। लेकिन इसमें बड़ी चुनौती है, क्योंकि असि नदी के किनारे बसे हुए लोगो को हटाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा? बीते कई वर्षों से अतिक्रमण हटाने को लेकर विरोध होता रहा है। अतिक्रमण हटाने नदी को अपने मूल स्वरूप में वापस लाने की जिम्मेदारी वीडीए, नगर निगम, सिंचाई विभाग, राजस्व विभाग और पुलिस महकमे को दी गई है। बता दें कि यह टीमें बृहस्पतिवार को कंदवा से कंचनपुर तालाब तक दौरा किया। अतिक्रमण हटाने का खाका भी तैयार किया गया। इसको लेकर जिलाधिकारी एस रामलिंगम ने बुधवार को विस्तृत आदेश भी जारी कर दिया है। जिलाधिकारी ने कहा कि गंगा का जलस्तर बढ़ने से पहले ही असि नदी को मुक्त कराया जाए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी और हाईकोर्ट की सख्ती के बाद से नदी को मूल स्वरूप में लाने की कवायद फिर से शुरू हो गई है। लेकिन असि नदी को मूल स्वरूप में लाना बड़ी चुनौती है।