27 साल पहले जीआरपी सिपाही हत्या मामले में पूर्व सांसद सहित 7 पर आज तय होगी सजा


प्रखर जौनपुर। शाहगंज स्टेशन पर चार फरवरी 1995 को जीआरपी सिपाही हत्याकांड में दोषी कराए दिए गए मछलीशहर के पूर्व सांसद उमाकांत यादव समेत सात लोगों के खिलाफ आठ अगस्त को अपर सत्र न्यायाधीश तृतीय (एमपी/एमएलए कोर्ट) शरद कुमार त्रिपाठी सजा तय करेंगे। मुकदमे में बहस के दौरान सीबीसीआईडी के वकील ने आरोपियों को अधिकतम सजा मृत्युदंड दिए जाने की मांग की थी। सीबीसीआईडी ने कोर्ट में पूर्व सांसद व आजमगढ़ जिले के दीदारगंज थाना अंतर्गत सरावां निवासी उमाकांत यादव, उनके कार चालक राजकुमार यादव निवासी खरसहन खुर्द थाना दीदारगंज, आजमगढ़, धर्मराज यादव निवासी सफीपुर थाना खेतासराय, महेंद्र प्रसाद वर्मा निवासी ईश्वरपुर उर्फ सलहरीपुर थाना खुटहन, सूबेदार यादव निवासी करंजाकला थाना सरायख्वाजा, सभाजीत पाल निवासी बांसदेव पट्टी थाना मड़ियाहूं के अलावा उमाकांत यादव के गनर बच्चू लाल जिला चंदौली के खिलाफ चार्जशीट दाखिल किया था। हाईकोर्ट ने पहले ही इस मामले के त्वरित निस्तारण का निर्देश दिया था। बहस के दौरान भी सीबीसीआईडी के सरकारी वकील ने कहा था कि दोषियों को कठोर दंड मिलने पर मृतक और घायल व्यक्तियों को न्याय मिलेगा। इस बीच, एमपी एमएलए कोर्ट प्रयागराज में बनने के कारण पत्रावली वहां भेजी गई थी, लेकिन बाद में हाईकोर्ट के दिशा निर्देश से यहां व अन्य जिलों में एमपी एमएलए कोर्ट गठित हुई और अपर सत्र न्यायाधीश तृतीय की अदालत में वर्तमान में सुनवाई चल रही है। अब तक 598 तारीखें पड़ी हैं। इस दौरान 19 गवाहों का परीक्षण हुआ। घटना के घायल गवाह पुलिसकर्मी लल्लन सिंह को पक्ष द्रोही घोषित कर दिया गया था। पुलिसकर्मी रघुनाथ सिंह व लालमणि सिंह ने गवाही दी थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस एवं साक्ष्यों को देखने के बाद पूर्व सांसद उमाकांत यादव सहित सात आरोपियों दोषी करार दिया है। सभी पर आईपीसी की धारा 147 बलवा, धारा 148 घातक हथियारों से युक्त होकर बलवा करना, धारा 225 आरोपी राजकुमार को विधि पूर्ण अभिरक्षा से छुड़वाना, धारा 302 हत्या ,धारा 307 हत्या का प्रयास, धारा 332 लोक सेवक को चोट पहुंचाना, धारा 333 गंभीर चोट पहुंचाना, धारा 427 रेलवे स्टेशन के कमरों के दरवाजे पर फायर कर नष्ट करना, धारा 7 क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट में अंधाधुंध फायरिंग करके अफरा तफरी मचाना, इसके अलावा आरोपी राजकुमार पर धारा 224 में विधि पूर्ण अभिरक्षा से भाग निकलने की धाराओं में आरोप तय हुआ।