नमामि गंगे के नाम पर अरबों खर्च लेकिन गंगाजल आचमन योग्य भी नहीं!


प्रखर डेस्क/ऐजेंसी। नमामि गंगे के नाम पर अरबों रुपया खर्च हो चुका है, लेकिन गंगाजल किसी भी जगह पर आचमन योग्य नहीं दिख रहा। यह खुलासा एक जांच रिपोर्ट में हुआ है। बता दें कि पतित पावनी गंगा का जल अब पीने योग्य भी नहीं रहा। एक जांच ने उसे डी श्रेणी में पहुंचा दिया है। इस श्रेणी में गंगाजल ज्यादा दूषित माना जाता है। बताते चले कि लाख प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश में गंगा जल की गुणवत्ता सुधरने के बजाय और भी खराब होती जा रही है। दुनिया की सबसे प्राचीन व धार्मिक नगरी कही जाने वाली वाराणसी समेत राज्य में कहीं भी गंगाजल शोधन के बगैर आचमन योग्य नहीं है। गंगा जल जांच में वाराणसी समेत राज्य में कहीं भी गंगाजल शोधन के बगैर आचमन योग्य नहीं है। सोनभद्र, मिर्जापुर, गाजीपुर, कानपुर, फरूखाबाद, कन्नौज समेत 17 जगहों पर गंगाजल की गुणवत्ता सबसे खराब यानी डी श्रेणी है। इस श्रेणी का जल सिर्फ वन्य जीवों और मतस्य पालन के लिए उपयुक्त होता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अगुवाई में गठित ओवर साइट समिति ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पेश अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। एनजीटी प्रमुख जस्टिस ए.के. गोयल की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष रिपोर्ट पेश की गई। बतादे कि सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस एस.वी.एस. राठोर की अगुवाई वाली समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि गंगाजल की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए हर माह 30 जगहों से नमूने लेकर जांच की जा रही है।
जिसमे जल की श्रेणियों के अनुसार….
– ए श्रेणी के अन्तर्गत जल का इस्तेमाल पारंपरिक शोधन के बगैर संक्रमणमुक्त करके आचमन योग्य होता है।
– बी श्रेणी के अन्तर्गत जल नहाने योग्य होता है।
– सी श्रेणी के अन्तर्गत शोधन के बाद जल को संक्रमणमुक्त करने पीने योग्य बनाया जा सकता है।
– डी श्रेणी के अन्तर्गत जल सिर्फ वन्य जीवों और मछली पालन के लिए उपयुक्त होता है।
समिति ने नालों की टैपिंग और सीवेज शोधन सयंत्र (एसटीपी) के निर्माण कार्य में देरी को प्रमुख वजह बताया है। कहा है कि गंगा में प्रदेश में 301 नालों गिरते हैं। इनमें से 156 नालों से दूषित पानी शोधन के बगैर ही बहाया जा रहा है। 71 नालों को टैपिंग के लिए योजना बनाने और मंजूरी देने का काम भी लटका है। करीब 2587 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज उचित तरीके से शोधन की बाट जोह रहा है।