विद्यापीठ में बड़ा पेंशन घोटाला !

– कुलपति व रजिस्टार झाड़ रहे पल्ला

– कार्य परिषद की बैठक में शासन की मंशा के विपरीत लिया गया निर्णय

प्रखर वाराणसी। वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में एक बड़ा मामला सामने आया है। सरकार की मंशा और नियमों को ताक पर रखकर दर्जनों कर्मियों को अवैध तरीके से पेंशन का लाभ दिया गया है। इसके लिए शासन स्तर से कोई आदेश नहीं है । साथ ही उच्च शिक्षा विभाग से भी कोई आदेश नहीं दिया गया है। लेकिन विद्यापीठ शासन के द्वारा इन लोगों को अवैध तरीके से पेंशन देने का मामला सामने आया है। गौरतलब है कि 1998 से कुल 45 लोग अलग – अलग विभागों में अनियमित तौर पर कार्यरत है, तथा कुछ लोग अब सेवानिवृत भी हो गए हैं। इस सभी 45 लोगों को 2017 में समायोजित करने का शासन द्वारा निर्देश दिया गया। जिसमें कहा गया कि इन लोगों को समायोजित करते हुए विद्यापीठ स्वयं के कोष से उनके वेतन का भुगतान करेगा। लेकिन इन्हें 2017 के पूर्व का ना ही वेतन का लाभ मिलेगा ना ही कोई एरियर दिया जाए। इस आदेश के बाद यह लोग लगातार पूर्व के वेतन व एरियर की मांग करते रहे लेकिन उक्त समय के कुलपति व रजिस्टार उनकी मांग पर कोई आदेश नहीं दिए। सूत्र बताते हैं कि यह लोग अपने मामले को लेकर उच्च न्यायालय में भी गए थे, जहां पर सिंगल बेंच के अलावा डबल बेंच ने भी इनके मामले को रद्द कर दिया था।
लेकिन मौजूदा कुलपति के नेतृत्व में विद्यापीठ कार्य परिषद की बैठक में इनको पेंशन का लाभ देने का निर्णय लिया गया और इसे स्वीकृति भी दे दी गई, जो की शासन की मंशा के विपरीत है।लेकर ऊपर के अधिकारियों से मिली भगत कर इन्हें पेंशन का लाभ दे दिया गया। सवाल ये है कि शासन के पत्र में बैकडेटिंग का लाभ दिये जाने एवं पेंशन हेतु एन०पी०एस० की कटौती को जी०पी०एफ० में स्थानान्तरित करने की स्वीकृति प्रदान करने संबंधी कहीं जिक्र ही नहीं है, तो फिर यह निर्णय किस आधार पर लिया गया है। इसके अलावा यह भी जानकारी निकल कर सामने आ रही है कि 2017 में तत्कालीन कुलपति डॉo पी.नाग के कार्यकाल में भी कर्मचारियों ने यही मांग उठाई थी लेकिन डॉ० पी.नाग ने उक्त वर्णित पत्र को दिखाते हुए कहा कि यदि इसमें बैक डेट से सेवा जोड़ने एवम पेंशन प्रदान करने हेतु निर्देश कहीं है । उनकी मांग को कुलपति द्वारा सिरे से नकार दिया गया था। प्रोफेसर नाग के बाद कुलपति बने प्रोफेसर टी एन सिंह ने भी कर्मचारियों की यह मांग अस्वीकृत कर दी थी। संबंधित फाइल पर डॉo पी.नाग एवम प्रो0 टीo एन० सिंह दोनों पूर्व कुलपतियों की असहमति भी दर्ज है। लेकिन वर्तमान कुलपति द्वारा किस आधार पर यह निर्णय लिया गया यह भी बड़े सवाल खड़े कर रहा है? बताते चले कि कुलपति ही कार्य परिषद के अध्यक्ष होते हैं। उन्हीं के हस्ताक्षर के बाद ही कोई भी पत्र आगे शासन में भेजा जाता है। उक्त मामले में वर्तमान कुलपति का कहना है कि यह जो 45 लोग के पेंशन का आदेश 2017 के आदेश पर नहीं हुआ होगा, किसी और आदेश पर हुआ होगा। ज्यादा जानकारी रजिस्ट्रार के पास होगी। 2017 के समायोजन का मामला मेरे समय का है और मेरे संज्ञान में है। यह शायद कोई शासन द्वारा पुराना समायोजन का आदेश होगा, उसके तहत हुआ होगा। उक्त मामले में जब विद्यापीठ की रजिस्टर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह लोग 1998 से कार्यरत हैं, 2006 में इनका समायोजन हुआ था, लेकिन किन्हीं कारणों से इनका समायोजन रद्द हो गया और वो 2017 में जाकर बहाल हुआ। इनमें से कुछ लोगों का 2006 से जीपीएफ भी कटा। कार्य परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि यह लोग 1998 से कार्यरत है और 2006 से इनका जीपीएफ भी कट रहा है लेकिन इनका समायोजन 2017 में बहाल हुआ इसके मद्देनजर कार्य परिषद में निर्णय लिया गया कि इन्हें बैक डेटिंग का लाभ देते हुए, पेंशन की संतुष्टि की जाए। इन्हें बैक डेटिंग के लिए सिर्फ पेंशन का लाभ दिया जाए, इसके अलावा ना वेतन और ना ही कोई एरियर दिया जाने का निर्णय हुआ। शासन के आदेश में समायोजन से अलावा ऐसा कोई निर्णय नहीं था। इसमें सिर्फ समायोजन करने का आदेश था। आगे रजिस्टार ने कहा कि यह मामला मेरे आने से पहले का है इसलिए विस्तृत जानकारी मुझे नहीं है। फाइल देखने के बाद ही पता चलेगा कि पूरा मामला क्या है? टेलिफोनिक वार्ता में कुलपति व रजिस्टार की बातों में काफी भिन्नता थी। इससे साफ जाहिर होता है कि कुछ ना कुछ गड़बड़ झाला है। फोन पर दोनों लोग गोल मटोल बातें करते रहे। अब देखना यह है कि उक्त मामले में उच्च अधिकारियों द्वारा क्या कार्रवाई की जाती है?