आसान नहीं होगा निरहुआ के लिए आजमगढ़ में अपनी पिक्चर हिट करना!


प्रखर आजमगढ। लोकसभा चुनाव की तैयारी में जोर शोर के साथ सभी पार्टियां लगी हुई हैं। कहा जाता है दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के सभी राज्यों से अधिक लोकसभा सीटें इस प्रदेश में है। यहां कुल 80 लोकसभा सीटें हैं। आज़मगढ तमसा नदी के तट पर स्थित महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है। आजमगढ़ गंगा और घाघरा नदी के मध्य बसा हुआ है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। यह जिला मऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर और अम्बेडकर जिले की सीमा से लगा हुआ है। पर्यटन के लिहाज से महाराजगंज, मुबारकपुर, मेहनगर, भवरनाथ मंदिर और अवन्तिकापुरी आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। शाहजहां के शासन काल के एक शक्तिशाली जमींदार आजम खां ने 1665 ई. में आजमगढ़ की स्थापना की थी। इसी कारण इस जगह को आजमगढ़ के नाम से जाना जाता है। चीनी की मिलें और कपड़ों की बुनाई यहां के प्रमुख उद्योग हैं। दिल्ली से आज़मगढ़ की दूरी 819.9 किलोमीटर है। आज हम आपको सूबे की ऐसी हॉट सीट के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कभी सपा की गढ़ मानी जाती थी। 2022 में हुए उपचुनाव में इस सीट से बीजेपी के निरहुआ ने जीत दर्ज की थी। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के सुपर स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को शिकस्त दी थी। हम कह सकते हैं कि आजमगढ़ सांसद यादव या मुस्लिम को ही बनाता रहा है। इस लोकसभा सीट से 1989 से यादव या मुस्लिम ही जीतते आ रहे हैं। उससे पहले भी इस सीट से यादव उम्मीदवार जीत दर्ज कर चुके हैं। इस बार निरहुआ के लिए आजमगढ़ लोकसभा आसान नहीं होगी क्योंकि बीते जिस उपचुनाव में निरहुआ सांसद बने थे। उसे चुनाव में विरोधी पार्टी सपा ने कुछ ज्यादा इंटरेस्ट नहीं लिया था। लेकिन इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा अपना सभी जोर-शोर लगाने पर जुटी हुई है और इस सीट को जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। बता दे कि यहां पर एमवाई फैक्टर बहुत ही ज्यादा काम करता है। जिस तरफ एमवाई फैक्टर के वोटर जाएंगे इस और सत्ता की धूरी चली जाती है। बीते कई लोकसभा चुनाव में एमवाई फैक्टर ने ही यहां के चुनाव को दिलचस्प बनाया है। आजमगढ़ लोकसभा सीट से निरहुआ या धर्मेंद्र यादव किसी को भी सीधे तौर पर आगे दिखाना बहुत जल्दबाजी होगी। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि निरहुआ भी यादव हैं और वो अपने संसदीय क्षेत्र में बीते कुछ समय से काफी एक्टिव रहे हैं। भाजपा लगातार यादव-मुस्लिम वोट को अपनी ओर करने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा भाजपा के साथ इस बार ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान भी हैं। वहीं बसपा की कद्दावर नेता गुड्डू जमाली अब सपा के साथ हैं, जिससे कयास लगाए जा रहे हैं कि सपा की मजबूती और भी बढ़ गई है। यहां यह बात बताना भी जरूरी है कि बीते चुनाव में सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन है। इसके अलावा 50 फीसदी से ऊपर अन्य जातियों के वोटर्स हैं। वहीं दलित मतदाताओं की संख्या तीन लाख के करीब है। जो हार-जीत में अहम रोल निभाती है। बसपा ने आजमगढ़ लोकसभा सीट से अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को टिकट दिया है। इसके बाद कयास लगाये जा रहे हैं कि अगर भी भीम राजभर मजबूती से लड़ते हैं, तो बीजेपी को बेहतर फायदा हो सकता है। लेकिन भीम राजभर अगर थोड़ा भी ढीले पड़े, तो सपा यहां पर मजबूत स्थिति में जा सकती है। इतिहास पर नजर डालें तो आजमगढ़ लोकसभा सीट कांग्रेस के पास पहले लोकसभा चुनाव से 1971 तक रही। 1952 में अलगू राय शास्त्री, 1957 में कालिका सिंह, 1962 में राम हरख यादव, 1967 और 1971 में चंद्रजीत यादव ने कांग्रेस से जीत दर्ज की थी। इमरजेंसी के बाद इस सीट से जनता पार्टी के रामनरेश यादव ने जीत दर्ज की। उनके सीएम बनने पर 1978 में कांग्रेस की मोहसिना किदवई यहां से सांसद बनीं। इसके बाद जनता पार्टी सेक्युलर के चंद्रजीत यादव 1980 में अपना पताका फहराने में सफल हुए। इसके 1984 कांग्रेस के संतोष सिंह इस सीट से विजयी हुए। इसके बाद इस सीट से कांग्रेस कभी जीत नहीं पाई। बसपा के रामकृष्ण यादव 1989 में और जनता दल के चंद्रजीत यादव 1991 में आजमगढ़ से सांसद चुने गए। इसके बाद सपा के टिकट पर 1996 में रमाकांत यादव और 1998 में बसपा के अकबर अहमद डंपी सांसद बने। इसके बाद फिर 1999 में सपा के टिकट पर रमाकांत यादव ने जीत दर्ज की। इसके बाद अकबर अहमद डंपी साल 2004 और 2008 के उपचुनाव में फिर से सांसद बने। इसके बाद लोकसभा चुनाव 2009 में रमाकांत यादव ने बीजेपी के टिकट पर यह सीट जीत ली। मोदी लहर के बावजूद लोकसभा चुनाव 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव ने आजमगढ़ से जीत दर्ज की। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2019 में आजमगढ़ लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थ। लेकिन 2022 में करहल विधानसभा सीट से जीत हासिल करने के बाद आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को शिकस्त दी थी। वर्तमान में निरहुआ यहां सांसद हैं। बीजेपी ने फिर उनपर भरोसा जताया है। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2022 के उपचुनाव में सपा और भाजपा को शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने कड़ी टक्कर दी थी। अब वह बसपा का साथ छोड़कर सपा के साथ जुड़ गए हैं। ऐसा में माना जा रहा है कि इस सीट से निरहुआ को कड़ी टक्कर मिलेगी। बतादे कि आजमगढ़ की कुल आबादी 46,13,913 लाख है। औसत साक्षरता दर 70.93 फीसदी है। इस जिले में विधानसभा की कुल 10 सीटें हैं, लेकिन आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें गोपालपुर, आजमगढ़, सगडी, मेंहनगर और मुबारकपुर हैं।
जातिगत समीकरण की बात करे तो 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी पांच सीटों पर सपा ने जीत दर्ज की थी। मेंहनगर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां एक लाख से ज्यादा दलित मतदाता, 70 हजार से ज्यादा यादव वोटर, राजभर और चौहान मतदाताओं की संख्या 35 हजार से अधिक और मुस्लिम वोटरों की संख्या 20 हजार से ज्यादा है। आजमगढ़ सदर सीट पर सबसे ज्यादा 75 हजार से अधिक यादव वोटर हैं। दलित और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 60 हजार के करीब है। मुबारकपुर में मुस्लिम मतदाता एक लाख 10 हजार से ज्यादा है। दलित वोटरों की संख्या 78 हजार और यादव मतदाताओं की संख्या 61 हजार के करीब है। सगड़ी सीट 82 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति के वोटर हैं। यादव 55 हजार से ज्यादा, कुर्मी 40 हजार से ज्यादा है और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 हजार से अधिक है। गोपालपुर में 68 हजार से ज्यादा यादव वोटर, 53 हजार से ज्यादा दलित और 42 हजार से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। आजमगढ़ में किसी भी प्रत्याशी के लिए जीत का आधार एम-वाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण का काम करना बताया जाता है। इस लोकसभा सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। इनकी आबादी करीब 26 फीसदी है। इसके बाद मुस्लिम मतदाता करीब 24 फीसदी हैं। यही दोनों समाजवादी पार्टी की जीत का आधार बनते रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी की जीत में दलितों के करीब 20 फीसदी वोट और मुस्लिम वोट बैंक को माना जाता है। भारतीय जनता पार्टी की जीत का समीकरण सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित वोट बैंक के साथ-साथ यादवों के एक वर्ग का समर्थन रहा है। अब तो चुनाव बाद ही पता चल सकेगा कि आजमगढ़ की जनता किसे अपना सांसद चुनती है, क्या वर्तमान सांसद निरहुआ को ही फिर मौका देती है? या समाजवादी पार्टी को फिर से यहां पर जीत का परचम लहराने में सहयोग करेगी।