लघु भारत है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, जहां होता है राष्ट्र का चिंतन – रमेश जी

– संघ का स्वयंसेवक अपने लिये नहीं अपितु अपनों के लिए जीता है।

– “संघ राष्ट्र को ही सर्वोपरि मानता है।”

– पथ संचलन का उद्देश्य राष्ट्र कार्य हेतु प्रेरणा प्रदान करना और राष्ट्रनिर्माण का भाव जागृत करना होता है

प्रखर वाराणसी। बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी दक्षिण भाग के मालवीय नगर द्वारा आयोजित पथ संचालन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काशी प्रान्त प्रचारक रमेश जी ने कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय लघु भारत है, जहां समग्र राष्ट्र का चिंतन और दर्शन प्राप्त होता है। भारतीयता किस प्रकार उत्कर्ष की ओर बढ़े, यही इस विश्वविद्यालय का लक्ष्य है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि मैदान में स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 1929 में नागपुर के मोहिते का बाड़ा शाखा में महामना की भेंट डॉ.हेडगेवार जी से हुई। महामना ने संघ के उत्तम कार्यां को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए समाज से धनराशि एकत्र करने की बात कही थी डाक्टर साहब ने उत्तर दिया कि मुझे केवल आपका सानिध्य चाहिए। उन्होंने उपस्थित स्वयंसेवकों को बताया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे 1928 में संघ कार्य भैयाजी दाड़ी सहित 30 स्वयंसेवकों ने प्रारम्भ किया था। श्री माधव सदाशिव गोलवरकर जी (श्रीगुरु जी) को संघ से जोड़ने वाले भैयाजी दाड़ी थे। 1936 से 1940 के बीच में संघ कार्य के विस्तार के लिए स्वयंसेवकों द्वारा समर्पित राशि से दो कमरों का भवन महामना ने बनवाया था जिसे आपातकाल के समय में तत्कालीन प्रशासन द्वारा हटा दिया गया। उन्होंने आह्वान किया कि इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला व्यक्ति राष्ट्रभक्त, नैतिक मूल्यों का पालन करने वाला, देशहित के लिए जीने वाला एवं परम्पराओं का पालन करने वाला हो। क्योकि हिन्दू समाज का संरक्षण एवं सर्वांगीण उन्नति महामना और डाक्टर साहब दोनों ही महापुरुषों का लक्ष्य था। उन्होंने आगे कहा कि एक समय ऐसा था जबकि हिन्दुओं को एकत्र करना मेंढ़क को तराजू में तौलने के बराबर था, परन्तु आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। संघ से निकला कोई भी व्यक्ति अपने मानस में राष्ट्र को प्रथम रखता है, देश के सामने आयी विभिन्न चुनौतियों में संघ देश के साथ खड़ा रहता है। इसी कारण 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को दिल्ली आमंत्रित किया था जिसमें तीन हजार स्वयंसेवकों ने गणवेष में भाग लिया। श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति हेतु भी संघ ने देश भर में जनजागरण किया जिसका परिणाम 22 जनवरी 2024 को अयोध्या राममन्दिर के रूप में पूरे विश्व ने अनुभव किया। हिन्दुत्व की मूल अवधारणा को सत्य सिद्ध करने का और व्यावहारिक रूप में उतारने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ करता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चिकित्सा विज्ञान संस्थान, का.हि.वि.वि. के निदेशक डॉ. सत्यनारायण संखवार ने कहा कि निष्ठावान चरित्रवान व्यक्ति का निर्माण करना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का लक्ष्य है। अपने विभिन्न आनुषांगिक संगठनों के द्वारा संघ समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को स्वयं से जोड़ने का कार्य करता है। एन.एम.ओ. के कार्यों की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि इस वर्ष थारु जनजाति के मध्य 90 हजार मरीजों का उपचार हुआ है। आपदाओं में संगठन की कार्यकुशलता अद्भुत है। स्वयं सेवकों को संबोधित करते हुए रमेश जी की पंक्ति ‘‘जिए देश हित मरे देश हित, कंटक पथ अपनाना सीखें’’ ने स्वयंसेवकों को खुब उत्साहित किया और कदम से कदम मिलाकर पथ संचलन करते हुए एक नया आयाम स्थापित किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संघ का भगवा ध्वज लगाया गया। स्वयंसेवकों ने विश्वविद्यालय कुलगीत प्रस्तुत किया। अतिथियों का परिचय मालवीय नगर कार्यवाह डॉ. अरुण देशमुख ने कराया। कार्यक्रम के पश्चात कृषि विज्ञान संस्थान से पथ संचलन प्रारम्भ हुआ जो संकाय मार्ग से होते हुए सिंह द्वार पर पहुंचा। संचलन में पहली बार सुसज्जित रथ पर भगवान श्रीराम दरबार की झांकी आकर्षण का केन्द्र रहा। इसी के साथ वाहन पर भारत माता, महामना पं0मदन मोहन मालवीय, आद्य सरसंघचालक डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार एवं प.पू.श्रीगुरू जी की झांकी संचलन का नेतृत्व कर रही थी। सभी स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में घोष वादन की धुन पर क्रमबद्ध पंक्ति में अनुशासन से चल रहे थे। स्वयंसेवको की ओर से माननीय भाग संघचालक अरुण द्वारा मालवीय जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद पथ संचलन स्थापना स्थल पर पहुंचा। वन्देमातरम गायन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ।
इस दौरान उपस्थित लोगों में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय टोली सदस्य रामाशीष जी, अवध प्रान्त बौद्धिक प्रमुख सुनील जी, मा.विभाग संघचालक डॉ.जे.पी. लाल, विभाग प्रचारक नितिन जी, भाग प्रचारक विक्रान्त जी, डॉ.सत्यप्रकाश पाल, सुनील मिश्रा, आशुतोष समेत सैकड़ों की संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित थे।