श्रीकला, बाबू कुशवाहा या फिर कृपाशंकर पर बरसेगी जौनपुर वासियों की कृपा, मुक़ाबला हुआ दिलचस्प!


प्रखर जौनपुर। बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की जौनपुर लोकसभा सीट से बाहुबली नेता धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी का नाम जब से आया है। तभी से जौनपुर की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। धनंजय सिंह जेल जाने से पूर्व स्वयं जौनपुर से ताल ठोकने के मूड में थे। लेकिन जेल जाने के बाद स्थितिया व परिस्थितिया दोनो बदल गई। लेकिन लगातार चुनाव लड़ने की बातों से इनकार नहीं किया जा रहा था। लगातार उनके जमानत की उनके वकील कोशिश करते रहे लेकिन उन्हें जमानत नहीं मिल सकी! आखिरकार जिस पार्टी से 2009 में सपा के पारस नाथ को हराकर
कभी सांसद बने थे, उसी पार्टी से घुमा फिराकर उनकी पत्नी को टिकट मिल गया। टिकट मिलने के बाद जौनपुर लोकसभा में नई चर्चा शुरू हो गई है। बता दे कि भाजपा ने अपनी पहली लिस्ट में ही जौनपुर लोकसभा सीट को फाइनल कर दिया था। महाराष्ट्र की राजनीति के कद्दावर नेता व जौनपुर के मूल निवासी कृपा शंकर सिंह को यहां से प्रत्याशी घोषित कर तमाम बीजेपी के अग्रज नेताओं के मंसूबों पर पानी फेर दिया। वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने कुछ दिन पहले ही मायावती सरकार में हुए एनआरएचएम नाम के बड़े घोटाले के सूत्रधार रहे बाबू सिंह कुशवाहा को यहां से प्रत्याशी घोषित कर सपा की तमाम नेताओं को अचंभित कर दिया। जिसके बाद बाबू सिंह कुशवाहा का समाजवादी पार्टी से टिकट घोषित होने के बाद लगातार पार्टी के बड़े नेता उनका विरोध करते दिखे। इन सबके बाद जौनपुर लोकसभा पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई है। जौनपुर लोकसभा सीट पर जातिय समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। लेकिन लोकसभा चुनाव में देश के राजनीतिक मिजाज के साथ जाति का गणित भी ज्यादा महत्वपूर्ण रहता है। जातीय गणित में कई बार लोकसभा के स्थानीय मुद्दे भी गायब हो जाते हैं। अब अगर जौनपुर लोकसभा के जातीय समीकरण की बात करे तो यहां की 87 प्रतिशत आबादी हिन्दू है और 12 प्रतिशत मुस्लिम, एक प्रतिशत अन्य है। यहां यादव, पासी, ठाकुर व पंडित जातियों की बाहुलता है। वर्तमान में जौनपुर लोकसभा से बसपा- सपा गठबंधन के सांसद श्याम सिंह यादव हैं। बता दें कि बसपा सपा गठबंधन के बाद बसपा व सपा का कैडर वोट एक साथ श्याम सिंह यादव को मिल गया था। जिसके बाद श्याम सिंह यादव ने भारतीय जनता पार्टी के 2014 में सांसद बने केपी सिंह को 2019 में हरा दिया। लेकिन इस बार स्थिति व परिस्थिति दोनों अलग है। सपा व बसपा दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। जिसके बाद साफ तौर पर बीजेपी यह मान के चल रही है की कृपा शंकर सिंह को अगर सामान्य जाति का पूरा वोट मिल जाता है। और अदर ओबीसी का वोट को बीजेपी अपने पाले में लाने में सफल रहती है तो बीजेपी के लिए जौनपुर लोकसभा सीट आसान हो सकती है! क्योंकि सामान जाति के वोटो की संख्या अच्छी खासी है। वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम यादव वोटो की संख्या भी सामान्य जाति के वोटो की संख्या के ही आसपास है। वही दूसरी तरफ़ सपा भी अपनी जीत को सुनिश्चित मानकर चल रही है। क्योंकि अगर यादव और मुस्लिम वोट पूरी तरह सपा की तरफ मोल्ड होता है, तो सपा की भी यहां से जीत हो संभव है! लेकिन धनंजय सिंह की पत्नी को बसपा का टिकट मिलने के बाद स्थितियां बदल चुकी हैं। अब पूरी तरह जौनपुर लोकसभा सीट त्रिकोणीय दिखाई दे रही है। धनंजय सिंह की पूरे जौनपुर में अच्छी खासी लोकप्रियता है। जिसको भुनाने में धनंजय सिंह के समर्थक कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। धनंजय सिंह की सामान्य जाति, यादव जाति, मुस्लिम व अन्य ओबीसी जाति के वोटरों में भी अच्छी खासी पैठ है। साथ ही उनकी पत्नी को बसपा का टिकट मिलने के बाद बीएसपी का कैडर वोट भी धनंजय सिंह की पत्नी के पाले में जाता हुआ दिख रहा है, जिसके बाद समर्थन धनंजय सिंह की पत्नी की जीत सुनिश्चित मान रहे हैं। लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मामला त्रिकोणीय होने के बाद भी बीजेपी का पलड़ा यहां पर भारी है। बतादे कि जौनपुर लोकसभा सीट पर करीब पौने दो लाख क्षत्रिय मतदाता है। यही कारण है कि यह सीट आजादी के बाद सात बार क्षत्रिय नेताओं के हाथ में रही है। 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में जनसंघ के ब्रह्मजीत सिंह ने कांग्रेस के बीरबल सिंह को हराया था। 1963 में ब्रह्मजीत सिंह की मौत हुई तो इसी साल उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्यासी राजदेव सिंह ने जनसघ मुखिया पं दीनदयाल को शिकस्त दी और 1963, 1967, 1971 तक जीत हासिल की। आखिरी बार 1984 में कांग्रेस को जीत नसीब हुई थी। 1977 के सत्ता विरोधी लहर के बाद 1980 में जहां कांग्रेस ने पूरे देश में वापसी कर बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन यह सीट हार गई थी। जनता पार्टी एस उम्मीदवार डॉक्टर अजीजुल्लाह आजमी ने कांग्रेस के राजदेव को हराया था। 1989 में पहली बार भाजपा का खाता यादवेंद्र दत्त ने कांग्रेस के कमला प्रसाद सिंह को हराकर खोला था। वहीं, 2009 में बाहुबली धनंजय सिंह को बसपा ने मैदान में उतारा और उन्होंने सपा के पारस नाथ यादव को हराकर कर सीट बसपा की झोली में डाल दी। 1999 के बाद 15 साल इंतजार के बाद 2014 में मोदी लहर में सीट भाजपा के केपी सिंह के पास चली गई। और 2019 में बसपा सपा गठबंधन के बाद यह सीट बसपा के खाते में चली गई। अब तक हुए चुनाव के परिणामो में 1952 बीरबल सिंह (कांग्रेस), 1957 गणपत राम (कांग्रेस), 1962 ब्रह्मजीत (जनसंघ), 1967 आरदेव (कांग्रेस), 1971 राजदेव सिंह (कांग्रेस),
1977 राजदेव सिंह (कांग्रेस), 1980 यादवेंद्र दत्त दुबे (भारतीय लोक दल), 1984 अजीजुल्ला (जनता पार्टी), 1989 कमला प्रसाद सिंह (कांग्रेस), 1991 यादवेंद्र दत्त (भाजपा), 1996 अर्जुन सिंह यादव (जनता दल), 1998 राज केसर (भाजपा), 1999 पारसनाथ यादव (सपा), 2004 चिन्मयानंद (भाजपा), 2009 धनंजय सिंह (बसपा), 2014 कृष्ण प्रसाद (भाजपा) व 2019 श्याम सिंह यादव (बीएसपी) विजेता बने है।