महंगाई और मध्यवर्ग की उदासीनता बीजेपी को पड़ेगी महंगी!

प्रखर। अरुण सिंह। 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की पूरी तैयारी को महंगाई और मध्यम वर्ग की उदसीनता ने उसकी सफलता को लेकर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। पहले चरण के मतदान प्रतिशत यह बताने के लिए काफी है कि इस बार मतदाता का उत्साह पिछले दोनों लोकसभा 2014 और 2019 में हुए चुनाव के मुकाबले काफी कम है। लिहाजा बीजेपी के रणनीतिकारों के कान खड़े हो गए हैं। हालांकि बुद्धिजीवियों का एक खेमा इसके लिए चुनाव आयोग द्वारा इन गर्मी के महीनों के चयन को दोषी ठहराया जा रहा है लेकिन बीजेपी थिंक टैंक को पता है कि इसका कारण क्या है। बता दें कि भारतीय जनता पार्टी की स्थापना धर्म और हिंदू स्वाभिमान की लड़ाई को ही आधार बना कर शुरु की गई थी। जिसको सबसे पहला समर्थन उधर हिंदू और मध्यम वर्ग में जमकर किया इसके समर्थन और सहयोग से या पार्टी अपने स्वर्णिम युग में आजकल सत्ता में विराजमान है लेकिन पार्टी ने जिस तरह से देश में जाति समीकरण को साधने के लिए इन समर्थन करने वाली जातियों को ही किनारे करने का काम शुरू कर दिया जो इसके मूल होटल और कदर में घर तक घुसे हुए हैं समय काल की परिस्थितियों को भांपते हुए बीजेपी थिंक टैंक में मध्यम वर्गी मतदाताओं को लगभग छोड़ते हुए जाति समीकरण की राजनीति पर 2024 के चावन को पूरी तरह से केंद्रीय विकृत कर दिया ऐसे में पहले से ही महंगाई की मार से जूझ रहे मध्यवर्गीय मतदाता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं यह एक बड़ा कारण है कि मतदान प्रतिशत काम हुआ है और यह मतदान प्रतिशत कम होना इस बात का संकेत है कि भारतीय जनता पार्टी के नारे अबकी बार 400 पार में बहुत दम नहीं रह गया है।

महंगाई के दंस को लगातार मध्यम वर्ग सिर्फ अपने सामान के लिए लगातार झेलता आ रहा था लेकिन इस बार के चुनाव में जिस तरह से बीजेपी ने सभी जातियों को साधने के लिए अपने समर्पित कार्यकर्ताओं और वोटरों को किनारे करने का काम किया है उसे यह साफ जाहिर है कि इस बार के चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम सामने आएंगे। हालांकि इस बार की पूरी संभावना है कि विपक्ष में कोई ताकतवर और भरोसेमंद नेतृत्व नहीं होने का फायदा बीजेपी को इस बार भी पिछले लोकसभा चुनाव की तरह मिलेगा। लेकिन उसके मूल मतदाता जो उसके लिए मजबूत रीढ़ की तरह काम करते हैं इस बार पूरी तरह से उदासीन दिखाई दे रहे हैं जिसका असर 4 जून को चुनाव परिणाम के साथ नजर आएगा। भारतीय जनता पार्टी के सबसे भरोसेमंद मतदाता और कार्यकर्ता रहे राजपूत समाज ने खुलेआम इस बार पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के थिंक टैंक ने परिस्थितियों को भांपते हुए डैमेज कंट्रोल की कोशिश से शुरू कर दी हैं ।अभी तक सिर्फ पहले चरण का मतदान हुआ है ऐसे में बीजेपी एक बार फिर अपने मूल कैडर के वोटरों को समझने में सफल होती है तो फिर उसकी सफलता बड़ी हो सकती है। अन्यथा जिस तरह की परिस्थितियों बनी हुई है ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल फिलहाल 300 के नीचे नजर आ रहे हैं।