भदोही लोकसभा चुनाव: हमारे अंगने में तुम्हारा बड़ा नाम है, अपना हो या गैर सबको राम-राम है

कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर, ना काहू बाहरी ना काहू से बैर ?

मिर्जापुर -भदोही में मतदाताओं ने बाहरी उम्मीदवारों की भी भरी झोली

प्रखर भदोही। भदोही की सियासी जमीन में घरेलू बनाम बाहरी मुद्दे को लेकर सोशलमीडिया में एक तपिश है। राजनीतिक दलों की तरफ से बाहरी उम्मीदवारों को थोपे जाने को लेकर सोशल मीडिया पर यह गुस्सा जितना तीखा दिखता है वह वोटिंग में कितना धरातलीय होगा यह तो वक्त बताएगा। लेकिन मिर्जापुर -भदोही की राजनीति में कबीरवाद की काफी अहमियत रहीं है। यहाँ के मतदाताओं ने ‘कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर। ना काहू से दोस्ती न काहू से बैर’ के सिद्धांत को अपनाया है। यानी ‘कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर, ना कोई बाहरी ना काहू से बैर’ के सिद्धांत को आजमाया है। राजनीतिक परिदृश्य का विश्लेषण करें तो घरेलू बनाम बाहरी मुद्दा यहाँ कभी सफल नहीं हो पाया। मतदाताओं ने बारी-बारी से सबको गले लगाया और सभी की झोली में भर -भर कर वोट डाले। राजनीतिक दलों के लिए सबसे अहम मसला घरेलू बनाम बहारी नहीं है। उन्हें सिर्फ ऐसे उम्मीदवार की तलाश है जो जातिय समीकरण में फिट बैठता हो और जिताऊ हो। उसकी राजनैतिक हैसियत से भी कोई मतलब नहीं रहा है। भदोही की जनता में उसकी पकड़ क्या रहीं है। भदोही के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास के मुद्दे क्या हैं इससे भी कोई सरोकार नहीं रहा है। मतलब सिर्फ इतना है कि ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक राजनीति में उसकी कितनी पकड़ है। उसी के लिहाज से उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे जाते हैं। भदोही की राजनीति में हाल के सालों में बिंद जाति का दबदबा रहा है। भदोही संसदीय इलाके में सबसे अधिक ब्राह्मण मतदाता होने का दावा किया जाता है लेकिन ब्राह्मणों का सियासी अस्तित्व संकट में है। कभी देश और प्रदेश की राजनीति का करिश्माई तबका अब अपनी जमीन तलाश रहा है।
मिर्जापुर -भदोही में छह बार यहाँ कांग्रेस के सांसद रहे। जबकि चार बार भगवा लहराया। समाजवादी पार्टी की साईकिल यहाँ तीन बार सरपट दौड़ी। जबकि तीन बार हाथी की मस्त चाल ने लोगों को लुभाया। एक-एक बार जनसंघ, लोकदल और जनता दल का उम्मीदवार मिर्जापुर -भदोही सीट से विजयी रहा है। भदोही की राजनीति में देखा जाय तो बाहरी और घरेलू उम्मीदवारों को बारी -बारी से आजमाया गया है।इसके पहले भी मिर्जापुर -भदोही की संसदीय राजनीति में घरेलू उम्मीदवारों को भी काफी तावज्जो दी गई। जिसमें पंडित श्यामधर मिश्र (भदोही) वंश नारायण सिंह (भदोही) फकीर अली अंसारी (भदोही)
युसूफ बेग (भदोही) रामरती बिंद (भदोही) रमेश दुबे (भदोही) और पंडित गोरखनाथ पांडेय (भदोही)
उमकांत मिश्र (मिर्जापुर) अजीज इमाम, (मिर्जापुर) रमेश बिंद (मिर्जापुर) जैसे चेहरे शामिल हैं। नरेंद्र सिंह कुशवाहा (सोनभद्र) फूलन देवी (गोरहा, यूपी) वीरेंद्र सिंह मस्त (बलिया) मिर्जापुर भदोही से सांसद चुने गए। पहले सांसद जाॅन एन विल्सन मिर्जापुर के बताए जाते हैं। सिर्फ यहीं तीन लोग बाहरी रहे हैं। इस तरह देखा जाय तो मिर्जापुर -भदोही में 1952 से लेकर अब तक 14 लोग 19 बार सांसद हुए हैं। मिर्जापुर -भदोही संसदीय क्षेत्र की जनता ने कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर। ना काहू से दोस्ती न काहू से बैर’ सिद्धांत के आधार पर सबको मौका दिया। यहाँ के मतदाताओं ने बाहरी उम्मीदवारों से कभी यह सवाल नहीं किया कि ‘ हमारे अंगने में तुम्हारा क्या काम है ? यहाँ के मातदाताओं की स्थित इसके उलट रहीं है ‘ हमारे अंगने में तुम्हारा बड़ा नाम है, अपना हो या गैर सबको राम-राम है’ की रहीं है। इसका कारण रहा की हाल के सालों में उम्मीदवारों का चयन राजनीतिक दलों ने जातिय समीकरण के आधार पर किया। जिसकी वज़ह से यह मसला कारगर साबित नहीं हुआ। लेकिन जिस ईमानदारी से यहाँ की जनता ने बाहरी लोगों को अपना संसदीय नेता चुना उसकी क़ीमत उसे कभी नहीं मिल पाई। भदोही का जमीनी विकास नहीं हो पाया। आज भी यहाँ मुद्दों की जमीन खाली है। ईवीएम की बटन सिर्फ जाति और धर्म पर दबेगी जबकी विकास की चाहत दमतोड़ती रहेगी। भदोही के प्रमुख सामाजिक व्यक्तित्व पंडित केशव कृपाल पांडेय के विचार में बाहरी बनाम घरेलू का मुद्दा भदोही की राजनीति के लिए अहम है। अगर एक भी बाहरी व्यक्ति चुनाव में उतारा जाता है तो यह भदोही की जनता के साथ अन्याय है। क्योंकि उस बाहरी व्यक्ति के जीतने से विकास पर असर पड़ता है। लेकिन अगर कोई बड़ी राजनैतिक हस्ती है जिसके जीतने से यहाँ की दशा और दिशा बदल जाएगी तो वह कहीं से भी चुनाव लड़ सकता है वह बाहरी की श्रेणी में नहीं आता। जैसे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वनारस और राहुल गाँधी वायनाड से चुनाव लड़ते हैं। ऐसे लोगों को बाहरी नहीं कहाँ जा सकता। वैसे कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा ने बाहरी उम्मीदवारों को तवज्जो देने में कोई गुरेज नहीं किया। लेकिन इसका दुरपयोग सबसे अधिक भजपा ने किया है। क्योंकि भजपा सत्ता में है और उससे लोगों की सबसे अधिक उम्मीद रहती है। राजनैतिक रूप से टक्कर के दलों को बाहरी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में नहीं उतरना चाहिए। किसी भी उम्मीदवार को सिर्फ एकबार मौका मिलना चाहिए। बड़े राजनैतिक दलों को इससे बचना चाहिए क्योंकि इससे मतदाताओं की उपेक्षा होती है। इस बार भी भजपा ने डॉ विनोद बिंद को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह मूलरूप से चंदौली के निवासी हैं। जबकि इण्डिया गठबंधन के साझा उमीदवार ललितेशपति त्रिपाठी का सम्बन्ध वाराणसी से है। वे पंडित कामलापति त्रिपाठी के परपोते हैं। लेकिन स्वतंत्र लोकसभा भदोही में बाहरी उम्मीदवारों को बड़े राजनैतिक दलों ने तवज्जो दिया है। हलांकि यहाँ के पहले सांसद पंडित गोरखनाथ पांडेय भदोही से रहे हैं। लेकिन जिस बाहरी घरेलू की बात की जा रहीं है उसी जनता ने बसपा उम्मीदवार पूर्व मंत्री पंडित रंगानाथ मिश्र और सपा से पूर्व विधायक विजय मिश्र की बेटी सीमा को पराजित कर दिया था।
फिलहाल भदोही में घरेलू बनाम बाहरी की राजनीति कभी निर्णायक नहीं रहीं है। मतदाताओं ने खुद अपने मुद्दे को भूल कर जाति और धर्म को गले लगाया। अगर ऐसा होता तो यहाँ से कभी दस्यु सुंदरी रहीं फूलन देवी यहाँ से चुनाव न जीतती, लेकिन मतदाताओं ने उन्हें भी सांसद चुना। 2008 में भदोही परिसीमन के बाद स्वतंत्र लोकसभा क्षेत्र बन गया। तब से यहाँ घरेलू बनाम बाहरी के बजाय मतदाताओं को जाति ने लुभाया है। क्योंकि राजनैतिक संगठनों ने बाहरी उम्मीदवारों के थोपे जाने के बाद पार्टी फैसलों का कभी विरोध नहीं किया। संगठन के जमीनी कार्यकर्ताओं ने निजी स्वार्थ, गुटबंदी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को महत्व दिया और मतदाताओं की उपेक्षा कर पार्टी फैसलों को ढ़ोते रहे। अबकी बार घरेलू बनाम बाहरी की लड़ाई कितनी सफल होगी यह तो वक्त बताएगा।

मिर्जापुर -भदोही से कब कौन जीता

1952-57 -जाॅन एन विल्सन- कांग्रेस
1957-62 – जाॅन एन विल्सन- कांग्रेस
1962-67- पं श्यामधर मिश्र- कांग्रेस
1967-71- बंश नारायण सिंह- जनसंघ
1971-77- अजिज इमाम- कांग्रेस
1977-80- फकीर अली अंसारी- भारतीय लोकदल
1980-84- अजिज इमाम- कांग्रेस
1984-89- उमाकांत मिश्र-कांग्रेस
1989-91- युसुफ बेग- जनता दल
1991-96- वीरेन्द्र सिंह मस्त- भाजपा
1996-98- फूलन देवी- सपा
1998-99- वीरेन्द्र सिंह मस्त- भाजपा
1999-2001- फूलन देवी- सपा
2002-2004- रामरती बिन्द – सपा (उप चुनाव)
2004-2007- नरेन्द्र कुमार कुशवाहा- बसपा
2007-2009- रमेश दूबे- बसपा ( उप चुनाव)

भदोही से कब कौन बना सांसद

2009-2014- गोरखनाथ पाण्डेय (बसपा)
2014-2019- वीरेन्द्र सिंह मस्त (भाजपा)
2019 – 2024 – डॉ रमेश चंद बिंद (भाजपा)