बर्मा (म्यामांर) में तख्तापलट के बात सरकार ने गैर-जरूरी यात्रा ना करने की दी सलाह

तख्तापलट के बाद बाइडेन ने दी म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी

प्रखर एजेंसी। यांगून स्थित भारतीय दूतावास ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट एवं इसके बाद हुए राजनीतिक घटनाक्रम के मद्देनजर जारी परामर्श में वहां रह रहे सभी भारतीय नागरिकों को सलाह दी है कि वे आवश्यक सावधानी बरतें और अनावश्यक यात्रा से बचें। दूतावास ने ‘म्यांमार में हालिया राजनीतिक घटनाक्रम के संबंध में म्यांमार में रह रहे भारतीय नागरिकों के लिए संदेश’ शीर्षक वाले परामर्श में कहा, ‘‘म्यांमार में हालिया घटनाक्रम के मद्देनजर सभी भारतीय नागरिक आवश्यक सावधानियां बरतें और अनावश्यक यात्रा से बचें.’’ उसने कहा, ‘‘वे आवश्यकता पड़ने पर दूतावास के संपर्क कर सकते हैं। इससे पहले, भारत ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट और शीर्ष नेताओं को हिरासत में लिए जाने पर सोमवार को ‘‘गहरी चिंता’’ व्यक्त करते हुए कहा था कि देश में कानून का शासन बना रहना चाहिए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. विदेश मंत्रालय ने म्यांमार के घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि भारत म्यांमार में हालात पर निकटता से नजर रख रहा है और वह म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया का हमेशा समर्थक रहा है। उल्लेखनीय है कि म्यांमार में सेना ने 1 फरवरी को तख्तापलट किया और देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया. मीडिया की खबरों के अनुसार, सेना के स्वामित्व वाले टेलीविजन चैनल ‘मयावाडी टीवी’ पर सोमवार सुबह यह घोषणा की गई कि सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है. भारतीय दूतावास के अनुसार, म्यांमार में करीब 7,000 एनआरआई रह रहे हैं और वहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या 15 लाख से 25 लाख के बीच हो सकती है। इस बीच, म्यांमार में सेना द्वारा किए गए तख्तापलट को लोकतंत्र की ओर बढ़ते कदम पर सीधा हमला करार देते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सोमवार को इस देश पर नए प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी. बाइडन ने एक बयान में कहा, ‘‘बर्मा (म्यांमार) की सेना द्वारा तख्तापलट, आंग सान सू ची एवं अन्य प्राधिकारियों को हिरासत में लिया जाना और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा देश में सत्ता के लोकतंत्रिक हस्तांतरण पर सीधा हमला है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र में सेना को जनता की इच्छा को दरकिनार नहीं करना चाहिए. लगभग एक दशक से बर्मा के लोग चुनाव कराने, लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करने और शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण को लेकर लगातार काम कर रहे हैं. इस प्रगति का सम्मान किया जाना चाहिए.’’ अमेरिकी राष्ट्रपति ने वैश्विक समुदाय का भी आह्वान किया कि वह एक स्वर में म्यांमार की सेना पर दबाव डाले।