बीएचयू में मुनव्वर राना के लिए श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई

प्रखर वाराणसी। मधुबन वाटिका बीएचयू में दिवंगत शायर मुनव्वर राना के लिए श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई। ज्ञातव्य है कि 14 जनवरी 2024 को मुनव्वर साहब के मृत्यु के वजह से साझा संस्कृति मंच और मधुबन गोष्ठी के संयुक्त कोशिश से आज का ये श्रद्धांजलि कार्यक्रम हुआ। मुनव्वर साहब के चित्र पर पुष्प अर्पण करके छात्रों बुद्धिजीवियों और नागरिक समाज के लोगों ने श्रद्धासुमन अर्पित किया। सभा मे उर्दू शोधकर्ता ने कहा कि रिवायती मुशायरों का बादशाह शायर हमारे बीच से चला गया । 26 नवम्बर 1952 को रायबरेली में पैदा हुए,तो सारी ज़िन्दगी रायबरेली का कलमा पढ़ते रहे ।
कलकत्ता में अब्बा के साथ ट्रक के पहियों संग ज़िन्दगी शुरू की और धीरे धीरे अपना ख़ुद का ट्रांसपोर्ट खड़ा कर दिया । एक शायर दिल इंसान एक कामयाब बिज़नेसमैन बन गया । ट्रक के पहिये जितना चलते,उससे ज़्यादा मुनव्वर साहब की किताबें चलती । बाज़ार में उनकी धूम थीं तो मुशायरों में उनका जलवा,ज़िन्दगी पूरी तरह मेहरबान थी इस मर्म छूकर शेर कहने वाले शख्स पर।
किसान आन्दोलन के समय शायर के अंदर बैठे सजग हिन्दोस्तानी ने लिखा, ” संसद को गिराकर खेत बना दो, इस मुल्क के कुछ लोगों को रोटी तो मिलेगी। अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुकद्दर, सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो “। कई दफा लेखकों की कलम ने सत्ता की कमर तोड़ी है। मुंशी प्रेमचंद ,दिनकर, पाश धूमिल और भी बहुत बड़े लेखक हुए है जिनकी कलम से क्रांति की मशाल जली। इस शेर को इसी धारा के अंतर्गत देखा पढा जाना चाहिए। बीते दस साल में खास तौर पर पत्रकार उन्हें मसाला खबर के लिए ढूंढते थे। मुनव्वर भी कभी मायूस नही करते,जो दिल मे आया कह डाला,उसका असर जब होगा, तब होगा। मुनव्वर राना का उर्दू अदब में बड़ा भारी काम रहा। ‘ माँ ‘ पर लिखते समय उनकी कलम में माँ सरस्वती स्वयं बैठ जाती थीं शायद। मुशायरों के मंच पर घर, भाई, गांव और माँ पर जब वो शेर कहना शुरू करते थे उनमें किसी पीर फ़क़ीर की दीवानगी और बन्दगी दिखती थी। ” ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है ” शेर कहते समय वो किसी छोटे बच्चे सदृश मालूम होते हैं जो अपनी माँ से लिपट जाना चाहता है। मां के आंचल में खो जाने को लालायित ये शायर ठीक उसी समय ” एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है, तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना ” कहते हुए पूरी तरह से सजग राजनीतिक वक्तव्य दे रहा होता है। श्रद्धांजलि सभा में मुख्य रूप से, रोशन, सोनाली, राणा रोहित, नीरज, धनंजय त्रिपाठी, विवेक, शाश्वत, इन्दु, जागृति राही, साक्षी, प्रज्ञा, वंदना, समर, शांतनु, आनंद, अभिनव,संगम, अर्पित समेत दर्जनों साहित्य प्रेमी मौजूद आदि मौजूद रहे।