त्रिकोणीय मुकाबले के बाद भी आसान नहीं मछलीशहर में बीजेपी की राह!


इस बार तीनों पार्टियों के प्रत्याशी एक ही बिरादरी से

प्रखर विशेष। उत्तर प्रदेश की मछलीशहर लोकसभा सीट काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये उन सीटों में से एक है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लगती हैं। इस सीट पर कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था। कांग्रेस यहां से दो बार जीत का परचम लहरा चुकी है। फिलहाल, इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा गया है। 5 विधानसभाओं वाले इस लोकसभा क्षेत्र में मोदी के संसदीय क्षेत्र के जिले की पिंडरा विधानसभा सीट भी आती है। साल 2019 के आम चुनाव में यहां से भाजपा के बीपी सरोज ने मात्र 181 वोटों से जीत दर्ज की थी। साल 2019 के चुनाव में जौनपुर सीट जहां एकतरफा मुकाबले में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी श्याम सिंह यादव के खाते में चली गई। वहीं मछलीशहर की सीट पर गिनती के आखिरी चरण तक ऊंट करवट बदलता रहा था। एक बार तो लगा कि सपा-बसपा गठबंधन के टी राम अब जीते, तब जीते। लेकिन, अंत में जब नरेन्द्र मोदी के वाराणसी जनपद के पिंडरा की ईवीएम खुली तो पासा पलट गया। वाराणसी में मोदी की लहर का ऐसा असर रहा कि बड़े अंतर से पिछड़ते आ रहे भाजपा के बीपी सरोज को आखिरकार 181 वोटों से जीत मिल ही गई। रोचक मुकाबले में मिली हार से सबक़ लेते हुए सभी विपक्षी दल इस बार अपनी कमियों को खंगालने में कसर नहीं छोड़ेंगे। 181 वोटों के मामूली अंतर से हार मिलने के बाद मछलीशहर की हार ही विपक्षियों के दिल में किसी फांस की तरह खटक रही होगी। ऐसे में अब 2024 का मुकाबला अपने सबाब पर चल रहा है तो सभी उस 181 वोटों के मामूली अंतर को लांघने लिए एड़ी चोटी का जोर जरूर लगाएंगे। इस लोकसभा में जातिगत आंकडे की बात करे तो मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र में सभी 5 विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर करीब 20 लाख वोटर हैं। इसमें निर्णायक भूमिका दलित वोटर ही निभाते हैं। ऐसा नहीं है कि दूसरी जातियां आंकड़ों में इनसे कहीं कमतर हैं। अगर जातिगत आंकड़े देखें तो यादव समेत अन्य पिछड़ा वर्गों की संख्या दलित वोटरों से कहीं ज़्यादा है। ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटरों को नज़रअंदाज़ करना भी पार्टियों को हार की माला पहना सकता है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार दलित- 3 लाख, यादव- 2 लाख, अन्य पिछड़ा- 2 लाख, पटेल- 1 लाख, ब्राह्मण- 1 लाख, क्षत्रिय- 1 लाख, मुस्लिम- 80 हजार की संख्या है। मछलीशहर लोकसभा सीट का उदय साल 1962 में हुआ था। यह क्षेत्र कालांतर में सामान्य लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आया था। तब मछलीशहर लोकसभा में जौनपुर जनपद की तीन- खुटहन, मछलीशहर और गढ़वारा व प्रतापगढ़ जनपद की दो विधानसभा पट्टी और बीरापुर को शामिल किया गया। इसी क्षेत्र से प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके सूरापुर (सुल्तानपुर जनपद) के मूल निवासी श्रीपति मिश्र भी यहां से सांसद रहे, लेकिन कांग्रेसी खेमे के इस बड़े नाम ने भी क्षेत्र को विकास की कोई बड़ी पहचान दिलाने की जहमत नहीं उठाई। इसी क्षेत्र से कांग्रेसी दिग्गज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नागेश्वर द्विवेदी, राम मंदिर आंदोलन के अगुवा स्वामी चिन्मयानंद और राम विलास वेदांती जैसे दिग्गज नेताओं ने संसद में नुमाइंदगी तो की लेकिन विकास के नाम पर नतीजा ‘ढाक के तीन पात’ वाला ही रहा। 2009 में एक बार फिर चुनाव आयोग की परिसीमन की कवायद की जद में यह क्षेत्र आ गया। इस बार बड़े भौगोलिक बदलाव के साथ इसे सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र घोषित कर दिया गया। परिसीमन के बाद इस क्षेत्र में तत्कालीन सैदपुर (सु.) लोकसभा क्षेत्र को समाप्त कर जफराबाद (उस समय का बयालसी), केराकत (सु.), मछलीशहर, मडिय़ाहूं व वाराणसी जनपद की पिंडरा विधानसभा को शामिल किया गया। वही मछलीशहर के एक तरफ इलाहाबाद हुआ करता था और दूसरी तरफ बनारस। मछलीशहर और केराकत विधानसभा को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया है। वर्तमान में मछलीशहर लोकसभा की विधानसभा मछलीशहर, केराकत व जफराबाद सपा के कब्जे में है, तो वही मडियाहू व पिंडरा बीजेपी के खेमे में है। जिसको देखते हुए कह सकते हैं कि मछलीशहर लोकसभा में सपा का पलड़ा भारी है, क्योंकि तीन विधानसभाओं पर सपा का कब्जा है। और तो और 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा- बसपा गठबंधन के प्रत्याशी व वर्तमान में बीजेपी के विधायक टी. राम मात्र 181 वोटो से हारे थे। जिसको लेकर भी सपा काफी अस्वस्थ है। लेकिन इस बार स्थिति उलट है। क्योंकि सपा ने तीन बार सांसद रहे व वर्तमान में केराकत (सु.) से विधायक तूफानी सरोज की बेटी सुप्रीम कोर्ट की वकील प्रिया सरोज को टिकट दिया है। लेकिन इसके इतर बसपा ने भी यहां से एक सेवानिवृत आईएएस ऑफिसर कृपाशंकर सरोज को टिकट देकर सपा के खेमे में मायूसी खड़ी कर दी। बताते चले कि बसपा उम्मीदवार सेवानिवृत्त आईएएस कृपाशंकर सरोज का जन्म 10 मार्च 1963 को मछलीशहर के सोनहिता गांव में हुआ। इन्होंने प्रयागराज से शिक्षा ग्रहण की। 1985 में पहले ही प्रयास में वह सिविल सेवा परीक्षा में चयनित हो गए। 1986 में आईएएस – एलाइड के रूप में काम शुरू किया। अगस्त 1989 में प्रॉपर आईएएस बनने के बाद पंजाब राज्य आवंटित हुआ। पंजाब कैडर में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए 31 मार्च 2023 को विशेष / अपर मुख्य सचिव पद से रिटायर हुए। इसके बाद वह गांव में रहने लगे। बतादे कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार के दौरान सरोज ने अतिरिक्त मुख्य सचिव रहते हुए घोटाले का पर्दाफाश भी किया था। उन्होंने तत्कालीन मंत्री साधू सिंह धर्मासोत पर केंद्र सरकार की पोस्ट मैट्रिक एससी छात्रवृत्ति योजना के तहत 63.91 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया था। साथ ही उन्होंने सैनिटरी पैड्स की खरीदारी के समय भी अनियमितता बरतने का आरोप लगाया। मंत्री ने हालांकि आरोप से इनकार किया था। अब अगर सपा प्रत्याशी प्रिया सरोज की बात करें तो प्रिया की पढ़ाई लिखाई दिल्ली से हुई है। दिल्ली स्थित एयफोर्स स्कूल में 12वीं तक पढ़ाई करने वाली प्रिया ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया और फिर नोएडा स्थित एक निजी विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की। वह फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहीं हैं। मछलीशहर लोकसभा से प्रिया सरोज अपने पिता तीन बार सांसद रहे तूफानी सरोज के राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का काम करने जा रही हैं। बताते चले की तूफानी सरोज सपा के बड़े नेताओं में से एक हैं। मछलीशहर लोकसभा से कई सपा नेता टिकट के जुगत में थे, लेकिन आखिरकार तूफानी सरोज ने अपनी बेटी को यहां से टिकट दिलवा दिया। साथ ही साथ अंदर खाने से यह भी खबर है कि सपा के एक खेमे में इसको लेकर विरोध भी हो रहा है। क्योंकि वर्षों से मछलीशहर लोकसभा में सपा का प्रतिनिधित्व कर रहे सपाइयों का कहना है कि प्रिया सरोज को अभी राजनीति का कोई अनुभव नहीं है और उन्हें सपा का टिकट दे दिया गया। अब देखना यह है कि वर्तमान में केराकत से विधायक और पूर्व सांसद रहे तूफानी सरोज किस प्रकार प्रिया सरोज को यहां से जीत दिला पाते हैं। वही अगर इस बार भी मोदी लहर चली तो प्रिया सरोज के लिए भी मुश्किल हो सकती है।