सेवा से पृथक किए गए तदर्थ अध्यापको का हो रहा है मतदान प्रशिक्षण

शिक्षको ने डीआईओएस पर लगाया हाईकोर्ट के आदेशो की अवमानना का आरोप

प्रखर थानागद्दी जौनपुर। न तो विद्यालय में सेवा और न ही वेतन, किंतु कहलाते है अध्यापक ।फिलहाल कर्मचारी नही है फिर भी लोकसभा निर्वाचन हेतु मतदान प्रशिक्षण करने के लिए मजबूर है।जी हां जिले में ढाई तीन दशक से ऐसे सकड़ो तदर्थ अध्यापक कार्यरत है जिन्हे सेवा से पृथक कर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। उनके हितों की अनदेखी कर कर्मचारी नही मानते हुए सरकारी कार्यों में उनकी सहभागिता देखी जा रही है।

जनता इण्टर कालेज रतनूपुर के अवकाश प्राप्त अध्यापक मुरली पाल ने बताया कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना करके शिक्षा विभाग एवं प्रशासन ने अवैध रूप से किस आधार पर उन पीड़ित अध्यापकों को चुनावी प्रशिक्षण में भाग लेने का फरमान जारी करवाया है।

जिला निर्वाचन अधिकारी डीएम रविंद्र कुमार मंदर से पूछा गया तो उन्होंने बताया की संबंधित विभाग से जानकारी लेकर बताता हू। मालूम हो की तदर्थ और सुप्रीम कोर्ट के फेर में जिले के लगभग 250 सहित प्रदेश के 1020 तदर्थ अध्यापकों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है। उ0 प्र0 मा 0 शिक्षक संघ शर्मा गुट के जिलाध्यक्ष संतोष सिंह बताते है कि सुप्रीम कोर्ट ने संजय सिंह बनाम स्टेट मुकदमे में कठिनाई निवारण की धारा के तहत नियुक्ति के प्रबंधकीय अधिकार 30 दिसम्बर वर्ष 2000 के बाद समाप्त होने के कारण वर्ष 2000 के बाद नियुक्त अध्यापकों की सेवाएं समाप्त करते हुए उन्हें सेवा मुक्त करने का निर्णय सुनाया।शिक्षा विभाग का महकमा सुप्रीम कोर्ट के इसी निर्णय की गलत व्याख्या करते हुए आदेश जारी किया जिसका परिणाम रिटायर्ड हो चुका या रिटायर्ड के कगार पर पहुंचा शिक्षक भुगत रहा है।उस निर्णय का जिनसे कोई सरोकार नहीं था। आश्चर्य है कि यूपी बोर्ड की परीक्षा के समय कक्ष निरीक्षक बनने से रोका किंतु मूल्यांकन करवाया गया और अब चुनावी ड्यूटी।यह कहा तक उचित है। जनता इण्टर कालेज रतनूपुर के शिक्षक नेता बीरेंद्र बहादुर सिंह संतोष सिंह जयशंकर सिंह संतलाल राजेश सिंह सतीश सिंह प्रेमचंद शुक्ल और अवकाश प्राप्त शिक्षक इंदुप्रकाश सिंह ने बताया कि शिक्षा निदेशक ने हाईकोर्ट के निर्देशन में आदेश दिया किया कि 7 अगस्त 1993 के बाद और 30 दिसंबर 2000 तक विद्यालयों में नियुक्त एल टी ग्रेड एवं प्रवक्ता के रूप में तदर्थ अध्यापकों के विनियमितिकरण का निस्तारण किया जाए।वाराणसी मंडल के संयुक्त शिक्षा निदेशक ने निस्तारण के स्थान पर नियम पूर्वक की की गई नियुक्तियों के विनियमितिकरण को एक तरफ से निरस्त करना शुरू कर दिया है ।पीड़ित अध्यापक को हाईकोर्ट द्वारा प्राप्त स्थगन और वेतन संदाय भी बेकार साबित हुआ जब जिला विद्यालय निरीक्षक ने उसे नजर अंदाज करके अध्यापकों को सेवा से पृथक करने का आदेश दे डाला।इन्होंने जिला निर्वाचन अधिकारी डी एम रविंद्र कुमार मंदर से आग्रह किया है कि डीआईओएस को निर्देशित करे कि हाईकोर्ट के आदेशो का अनुपालन करते हुए संबंधित शिक्षको की समस्याओं का निदान करे।

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शिक्षक संघ ठकुराई गुट के प्रदेशीय संरक्षक रमेश सिंह ने कहा कि शिक्षा निदेशक के विनियमितिकरण के निस्तारण के आदेश से प्रदेश के कई मंडलों में 30 दिसंबर 2000 के पूर्व नियुक्त तदर्थ शिक्षको का विनीयमितिकरण किया गया किंतु वाराणसी मंडल में थोक के भाव से निरस्त करके जेडी ने एक तरफ तानाशाही दिखाई है तो दूसरी तरफ माननीय उच्च न्यायालय के आदेशो को ठेंगा दिखाया है। इतना ही नहीं दो कदम आगे जाकर उन्होंने 7 अगस्त 1993 से पूर्व के नियुक्त अध्यापक जो मार्च 2024 में रिटायर्ड हो गए उनके अवशेय वेतन भविष्य निधि अन्य देयक एवं पेंशन हाथ से छीन लिए। बड़े दुख की बात है कि बहुत रिटायर्ड हो गए और शेष दो चार वर्ष में रिटायर्ड हो जायेगे। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा विभाग एवं शिक्षा अधिकारियों की अदूरदर्शिता मनमानी एवं हाईकोर्ट के आदेशो की अवमानना से सेवा से पृथक अध्यापक और उसका परिवार सदमे में है।कानून की अवहेलना एवं निरंकुशता के चलते जहा हजारों का निवाला छीन रहा वही ये अधिकारी सरकार की स्वच्छ छवि पर पानी फेर रहे है। जिला विद्यालय निरीक्षक अशोक नाथ तिवारी से जब शिक्षक नेता रमेश सिंह ने पूछा कि जब तदर्थ अध्यापकों की आप सेवा समाप्त कर रहे है और हाईकोर्ट का आदेश नही मान रहे है तो इन्हे किस आधार पर चुनाव के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।इनसे काम लिया जा रहा है तो हाईकोर्ट के आदेशो का अनुपालन हो।इस पर जिला विद्यालय निरीक्षक ने बताया कि मैं इस विषय में कुछ नही कर सकता।जिला निर्वाचन अधिकारी के पास पहले से सूची भेजी गई थी। अतः वही निर्णय ले सकते है।