वाराणसी में मुगलों के समय का शाही नाला मिला, 60% तक सीवर की समस्या का हो सकता है हल

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अस्सी घाट से लेकर कोनिया तक करीब 24 किलोमीटर का है हैं यह नाला, इस नाले में अर्दली बाजार सहित अन्य जगहों से भी आई हुई है कई शाखाएं

 

इतना चौड़ा की दो हाथी एक साथ निकल जाएं

प्रखर वाराणसी। दशाश्वमेध इलाके में एक बड़ा नाला मिला है। बतादे कि सोमवार दोपहर हाइड्रोलिक गेट बनाने के लिए हुई खुदाई के दौरान यह नाला प्रकाश में आया है।पूरी तरह सूखे नाले के बारे में जल निगम के अधिकारियों को भी कुछ नहीं पता है। नाला कितना लंबा है? कहां से कहां तक जाता है? कब इसका निर्माण हुआ? यह सब किसी अधिकारी को फिलहाल नहीं पता है। यानी अधिकारियों को न तो इस नाले के भूगोल के बारे में जानकारी है और न ही इसका इतिहास की। वही आसपास के लोग इसे शाही नाला का ही हिस्सा मान रहे हैं। इसे भी शाही नाले की तरह अंग्रेजों के जमाने का नाला माना जा रहा है। वही देर रात राज्यमंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी भी इसे देखने पहुंचे। उन्होंने जल निगम के अधिकारियों से इस नाले के बारे में जानकारी ली। जल निगम के अधिकारियों ने इस नाले के शाही नाले का हिस्सा होने को लेकर स्पष्ट न होने की बात कही। राज्यमंत्री ने अधिकारियों से मंगलवार को इस नाले की जानकारी लेने को कहा है। दूसरी तरफ क्षेत्रीय लोग इसे शाही नाला का हिस्सा मान रहे हैं। इस नाले का आकार बड़ा है। उसमें नीचे उतरने के लिए लोहे की कड़ियां भी लगी हुई हैं। खोदाई के दौरान जब इस नाले का चौकोर ढक्कन खोला गया तो लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। आसपास के काफी लोग इस नाले को देखने पहुंचे गए। स्थनीय लोगों का कहना है कि उन्होंने पहली बार इस तरह का नाला देखा है। स्थानीय युवक सोनू इस नाले 15 फीट की गहराई तक गया और फिर उसके नीचे जाने की हिम्मत नहीं कर सका। बोला- बहुत गहरा है। इस नाले में पानी नहीं है। उसने बताया कि नाला और भी गहरा हो सकता है मगर अंधेरा होने के कारण गहराई का सही अनुमान नहीं लग सका है। इसके अलावा राजकीय निर्माण निगम के अधिकारियों ने इस नाले की जानकारी जल निगम गंगा प्रदूषण व नगर निगम के अधिकारियों को दी। जल निगम के कुछ अधिकारी देर शाम मौके पर पहुंचे। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के प्रोजेक्ट मैनेजर एसके बर्मन ने बताया कि यह शाही नाला का हिस्सा हो सकता है लेकिन फिलहाल स्पष्ट रूप से कुछ कह पाना संभव नहीं है। बनारस शहर में एक शाही नाला है। यह भी ऐतिहासिक धरोहर है। इसे मुगलों ने बनाया था जिसे अंग्रेजों ने शहर का सीवेज सिस्टम बना दिया। मुगलकाल के दौरान ‘शाही नाला’ को ‘शाही सुरंग’ के नाम से जाना जाता था। इसकी खासियत यह बताई जाती है कि इसके अंदर से दो हाथी एक साथ गुजर सकते हैं। शहर के पुरनियों का कहना है कि अंग्रेजों ने इसी ‘शाही सुरंग’ के सहारे बनारस की सीवर समस्या सुलझाने का काम शुरू किया। वही जेम्स प्रिंसेप की कल्पना के अनुसार, इसका काम वर्ष 1827 में पूरा हुआ था। इसे लाखौरी ईंट और बरी मसाला से बनाया गया था। अस्सी से कोनिया तक इसकी लंबाई 24 किलोमीटर बताई जाती है। यह अब भी अस्तित्व में है लेकिन उसकी भौतिक स्थिति के बारे में सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। वही शहर के पुरनियों के अनुसार यह नाला अस्सी, भेलूपुर, कमच्छा, गुरुबाग, गिरिजाघर, बेनियाबाग, चौक, पक्का महाल, मछोदरी होते हुए कोनिया तक गया है। हकीकत यह है कि इसका नक्शा नगर निगम या जलकल के पास नहीं है। इस प्राचीन नाले की मुख्य लाइन अस्सी से कोनिया तक 7.2 किलोमीटर लंबी है, जो भेलूपुर चौराहा, बेनियाबाग मैदान, मछोदरी होते हुए गुजरी है। इसकी सहायक लाइनें शहर के अन्य हिस्सों में फैली हैं। उदाहरण के तौर पर, अर्दली बाजार से आकर एक शाखा भी इसमें मिलती है। पिछले चार साल में कई बार शाही नाले की सफाई का समय बढ़ाना पड़ा, लेकिन वह मुकर्रर तारीख नहीं आई जिसमें कहा जा सके कि शाही नाले की मुकम्मल सफाई हो गई। शाही नाले की लंबाई अस्सी से लेकर कोनिया के आगे खिड़किया घाट तक 7.12 किलोमीटर है। बताया जाता है कि शाही नाले पर 500 मकान बने हैं। शाही नाले की सफाई में सबसे बड़ी बाधा मकान हैं। इन मकानों के नीचे से शाही नाला गुजरा है। इसलिए मछोदरी से कोनिया तक करीब 12 सौ मीटर लंबे शाही नाले की सफाई के दौरान कोई बड़ा जोखिम न हो, इसलिए हर कदम फूंक कर रखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसकी सफाई, मरम्मत (मेंटीनेंस) और लाइनिंग होने से बनारस के पुराने शहरी इलाके में सीवर ओवरफ्लो की 60 फीसद समस्या दूर हो जाएगी। अधिकारी कहते हैं कि शाही नाले की सफाई का कार्य ब्लाइंड वर्क है। इस दौरान कई तरह के जोखिम हैं इसलिए कार्य पूरा होने में देर हो रही है।