गाजीपुर- हजरत अली की शहादत के मौके निकाला गया जुलूस

प्रखर ब्यूरो ग़ाज़ीपुर। खुदाईपूरा नखास में इमामबाड़ा मीर अली हुसैन से हजरत अली की शहादत के मौके पर आज दिन शनिवार को एक जुलूस निकाला गया। इसके पहले इमामबाड़े में सुबह 9:30 बजे से मजलिस का आयोजन हुआ, जिसमें पहली मजलिस जौनपुर से आए सोजख्वान शबाब हैदर और उनके साथियों ने किया। जिसके बाद वाहिद गाजीपुरी, सीमाब गाजीपुरी, एलिया गाजीपुरी, नादेअली गाजीपुरी ने हजरत अली की शान में कलाम पेश किया। इसके बाद इराक के पवित्र शहर नजर से आए शिया धर्मगुरु मौलाना सैयद रजा अली दाएम साहब ने हजरत अली के वक्तव्य के बारे में बताया की “अगर शहर या देश में कोई रोटी की चोरी करे तो उस चोर के हाथ ना काट कर उस बादशाह के हाथ काटे जाएं जिस के शासनकाल में कोई व्यक्ति रोटी की चोरी करने पर मजबूर है” इसके बाद दूसरी मजलिस का आयोजन ठीक 1:00 बजे दिन में जोहर की नमाज के बाद हुआ, जिसमें जंगीपुर के विश्व प्रसिद्ध सोजख्वान सिराज अली जंगीपुरी ने अपने साथियों के साथ किया, जिसके दौरान सभी की आंखें भर आई। सोजख्वानी के बाद उस्ताद शायर कायम हुसैनपुरी ने शहादत के हवाले से कलाम पेश किया। दूसरी मजलिस को जिला मुजफ्फरनगर से आए मौलाना गजन्फर अब्बास तूसी ने मजलिस पढी, जिसमें मौलाना ने बताया कि आज से 14 सौ साल पहले हजरत अली को नमाज की हालत में शहीद करके दुनिया में आतंकवादी हमले की शुरुआत की गई थी, जिसमें हजरत अली को सजदा करते समय पीछे से जहर में भीगी तलवार से एक नाम निहाद मुसलमान अब्दुल रहमान इब्ने मुलजिम ने हमला करके शहीद कर दिया था, जिसका गम आज भी हम मना रहे हैं। मौलाना ने आगे बताया कि आज वर्तमान दुनिया में जहां कहीं भी आतंकवादी हमला हो विशेषकर पूजा स्थलों (मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा) पर यह समझ लेना चाहिए कि हज़रत अली के कातिल अब्दुल रहमान इब्ने मुलजिम की अपवित्र औलादे (नस्लें) जिंदा हैं। इसके बाद ताबूत निकाला गया जिसके साथ अंजुमन मोहम्मदया मोहम्मदपुर ने विशेष अंदाज में नौहाख्वानी पेश किया, जिसमें बादशाह राही मुख्य रूप से नोहा पेश कर रहे थे। जुलूस के दौरान रास्तों में होने वाले वक्तव्यों में पहला भाषण इलाहाबाद से आए मौलाना ग़ालिब अब्बास जैदी ने अली के जीवन पर प्रकाश डाला और हजरत अली के जीवन काल में उनसे जुड़ी घटनाओं के बारे में बताया। उसके बाद अंजुमन हुसैनिया नखास के नौजवानों ने कमा एवं जंजीर का मातम कर हजरत अली को अपने खून का पुरसा पेश किया। दूसरे भाषण को ईरान के शहर कुम से आए मौलाना सैयद इंतजार मेंहदी ने हजरत अली की हुकूमत पर प्रकाश डाला। तीसरे भाषण में गाजीपुर के शिया धर्मगुरु तनवीर उल हसन ने हजरत अली की इंसाफ पसंदी के बारे में बताया कि उनको उनकी अदालत की वजह से उनके इंसाफ की वजह से शहीद कर दिया गया। जुलूस शहर के मुख्य मार्गो यानी नखास तिराह, सनबाजार होते हुए छवलका इनार पहुंचा जहां पर रघुनाथ जदूनाथ रंग वाले की दुकान पर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अब्बास रजा ‘नैयर जलालपुरी’ विभागाध्यक्ष उर्दू विभाग, ने तकरीर की, जिसमें वह हजरत अली की करुणा और दया के बारे में बताते हुए कहते हैं कि “जब भी तुम किसी गरीब की मदद करो तो हमेशा अपनी नजर को झुकाए रखो नहीं तो यह संभव है कि तुम्हारी उठी हुई निगाहों से उस गरीब को मदद लेते हुए शर्मिंदगी महसूस हो और तुम्हारे अंदर अहंकार पैदा हो जाए”। यहां से जुलूस काजी टोला स्टीमरघाट स्थित इमामबाड़ा हाजी सैयद विलायत अली में जाकर समाप्त हुआ, जिसमें अंतिम तकरीर मौलाना जाबिर अली ने हजरत अली की मौत से पहले की गई वसीयतों के बारे में बताया। इनकी तकरीर के बाद जुलूस यहीं पर समाप्त हो गया, जिसमें नगर क्षेत्र के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों से भी अकीदतमन्द लोग शामिल हुए, क्योंकि लगातार पिछले 2 सालों से कोविड-19 के कारण यह जुलूस नहीं उठाया गया था, जिस कारण इस वर्ष भीड़ देखने को मिली। साथ ही साथ पूरे जुलूस में प्रशासन की हाजिरी सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखी गई और अंत में आए हुए सभी लोगों का जुलूस के आयोजक साकिब आब्दी ने अभिवादन व धन्यवाद किया।