ग़ाज़ीपुर- श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के लिए निकली भव्य कलश यात्रा

प्रखर ब्यूरो गाजीपुर। जनपद के महर्षि यमदग्नि के पौराणिक क्षेत्र जमानियां के बेटाबर स्थित राम जानकी मंदिर में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के निमित्त भव्य कलश यात्रा निकाली गई। इस कलश यात्रा में श्रद्धालुओं ने बढ चढ कर भाग लिया। कलश यात्रा श्री राम जानकी मंदिर परिसर में बने मंडप से प्रारम्भ होकर जमानियां गंगा तट पर पहुंची। वहां से कलश यात्रियों ने गंगा स्नान के पश्चात पूजनोपरांत कलश में गंगा जल लिया। तत्पश्चात कलश यात्री पुनः यज्ञ स्थल पर निर्मित यज्ञ मंडप में वापस लौटे। श्रद्धालुओं के जयकारे से पूरा क्षेत्र भक्ति मय हो गया था। कलश यात्रा का नेतृत्व अयोध्या वासी मानस मर्मज्ञ भागवतवेत्ता महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिव राम दास जी उपाख्य फलाहारी बाबा कर रहे थे। इस अवसर पर श्रद्धालुओं को यज्ञ की महत्ता समझाते हुए फलाहारी बाबा ने कहा की वर्तमान में अशांति रुपी चिंगारी को शांत करने एवं संकट रूपी बादल को छिन्न भिन्न करने के लिए ऋषियों द्वारा प्रदत्त यज्ञ ही सामर्थ्यवान है। यज्ञ मानव जीवन को सफल बनाने की एक आधारशिला है। इससे दुख, दरिद्रता और कष्टों से छुटकारा मिलता है। दैहिक दैविक एवं भौतिक ताप संताप को हरण करने की क्षमता है। यज्ञ के आहूति के धुऐं से वायुमण्डल के समस्त हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते है। फलाहारी बाबा ने कहा की यज्ञ शब्द यज व धातु से सिद्ध होता है। इसका अर्थ है देव पूजा, संगतिकरण और दान। संसार के सभी श्रेष्ठकर्म यज्ञ कहे जाते हैं। यज्ञ को अग्निहोत्र, देवयज्ञ, होम, हवन, अध्वर भी कहते हैं। लोग जानते हैं कि दुर्गंधयुक्त वायु और जल से रोग, रोग से प्राणियों को दुख, सुगंधित वायु और जल से आरोग्य व रोग के नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है। जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष की नासिका से सुगंध का ग्रहण होता है। अग्नि में डाला हुआ पदार्थ सूक्ष्म होकर व फैलकर वायु के साथ दूर देश में जाकर दुर्गंध की निवृत्ति करता है। अग्निहोत्र से वायु, वृष्टि, जल की शुद्धि होकर औषधियां शुद्ध होती हैं। शुद्ध वायु का श्वास स्पर्श, खान-पान से आरोग्य, बुद्धि, बल व पराक्रम बढ़ता है। इसे देवयज्ञ भी कहते हैं क्योंकि यह वायु आदि पदार्थों को दिव्य कर देता है। कहा कि परोपकार की सर्वोत्तम विधि हमें यज्ञ से सीखनी चाहिए। जो हवन सामग्री की आहूति दी जाती है उसकी सुगंध वायु के माध्यम से अनेक प्राणियों तक पहुंचती है। वे उसकी सुगंध से आनंद अनुभव करते हैं। यज्ञकर्ता भी अपने सत्कर्म से सुख अनुभव करते हैं। सुगंध प्राप्त करने वाले व्यक्ति याज्ञिक को नहीं जानते और न ही याज्ञिक उन्हें जानता है फिर भी परोपकार हो रहा है वह भी निष्काम रूप से। यज्ञ में चार प्रकार के हव्य पदार्थ डाले जाते हैं। सुगंधित केसर, अगर, तगर, गुग्गल, कपूर, चंदन, इलायची, लौंग, जायफल, जावित्री आदि इसमें शामिल हैं। मलमूत्र के विसर्जन, पदार्थों के गलने-सड़ने, श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया, धूम्रपान, कल-कारखानों, वाहनों, भट्ठों से निकलनेवाला धुआं, संयंत्रों के प्रदूषित जल, रसायन तत्व एवं अपशिष्ट पदार्थो आदि से फैलनेवाले प्रदूषण के लिए मानव स्वयं ही उत्तरदायी है। अत: उसका निवारण करना भी उसी का कर्तव्य है। वस्तुत: पर्यावरण को शुद्ध बनाने का एकमात्र उपाय यज्ञ है। यज्ञ प्रकृति के निकट रहने का साधन है। रोग-नाशक औषधियों से किया यज्ञ रोग निवारण वातावरण को प्रदूषण से मुक्त करके स्वस्थ रहने में सहायक होता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी परीक्षण करके यज्ञ द्वारा वायु की शुद्धि होकर रोग निवारण की इस वैदिक मान्यता को स्वीकार किया है। प्राय: लोगों का विचार है कि यज्ञ में डाले गए घृत आदि पदार्थ व्यर्थ ही चले जाते हैं परंतु उनका यह विचार ठीक नहीं है। विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता अपितु उसका रूप बदलता है। अत: यज्ञ करते हुए बड़े प्रेम से वेदमंत्र बोलकर आहूति दें जिससे मन शुद्ध, पवित्र और निर्मल बन जाए। प्रदूषण समाप्त हो जाए। जनता खुशहाल हो व विश्व का कल्याण हो। अरणी मंथन के पश्चात यज्ञशाला में आचार्य गण की उपस्थिति में मंत्रोच्चार के साथ हवन प्रारम्भ हो जायेगा।