महेंद्र व वीरेंद्र के बीच आए सत्येंद्र ने चंदौली लोकसभा चुनाव को बनाया दिलचस्प!


कैबिनेट मंत्री महेंद्र नाथ पांडे से नाराजगी की चर्चा भी जोरों पर

प्रखर डेस्क। पीएम मोदी की लोकसभा से सटे चंदौली लोकसभा में इस बार चुनाव के दौरान लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है। चंदौली में भाजपा, सपा व बसपा तीनो ने अपने- अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है। बता दे कि इस बार महेंद्र, वीरेंद्र और सत्येंद्र के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। वही महेंद्र नाथ पांडे इस बार अपनी हैट्रिक बनाने के लिए मैदान में ताल ठोकेंगे, तो राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी वीरेंद्र सिंह सपा की साइकिल के साथ कदमताल करके जीत का स्वाद चखने के लिए बेताब हैं। इन दोनों लोगों के बीच बसपा के सत्येंद्र अपने समाज के 2 लाख से अधिक वोटरों को साधने का प्रयास करेंगे। महेंद्र, वीरेंद्र और सत्येंद्र के बीच का यह त्रिकोणीय मुकाबला चंदौली लोकसभा में काफी दिलचस्प होने वाला है। डॉ महेंद्र नाथ पांडे मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री है और चंदौली लोकसभा से लगातार दो बार जीत कर संसद पहुंच चुके हैं। इस बार अपनी हैट्रिक लगाने के लिए पूरा जोर लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। बताते चले की 2014 की लोकसभा में महेंद्र नाथ पांडे ने एक तरफा भारी मतों से चुनाव जीतकर अपनी उपस्थिति साबित की थी। लेकिन 2019 की लोकसभा चुनाव में महेंद्र नाथ पांडे की जीत का अंतर बेहद ही कम हो गया। जो जीत का आंकड़ा 2014 में लाख में था, वह आंकड़ा 2019 में हजार की संख्या में आकर सिमट गया। लेकिन पिछले आंकड़े को देखते हुए महेंद्र नाथ पांडे का सफर इस बार आसान नहीं दिख रहा, क्योंकि सपा ने राजनीति के मझे खिलाड़ी वीरेंद्र सिंह को चंदौली लोकसभा से प्रत्याशी बनाया है । जिनकी इन दिनों क्षेत्र में काफी चर्चा चल रही है। वही उड़ती- उड़ती खबर यह भी है कि चंदौली लोकसभा में महेंद्र नाथ पांडे को लेकर एक धड़े में नाराजगी भी है। जिसको लेकर आए दिन क्षेत्र में चर्चाएं देखने को मिल रही है। वही कुछ लोगो का कहना है कि इस बार भी लोकसभा का चुनाव प्रत्याशी को देखकर नहीं मोदी व भाजपा को देखकर ही लड़ा जा रहा है। जिससे महेंद्र नाथ पांडे की जीत की उम्मीद बढ़ जाती है। लेकिन अब चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठता है। एक बार चंदौली लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डाले तो, इस निर्वाचन क्षेत्र में यूपी विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, जिनमें मुगलसराय, सकलडीहा, सैयदराजा, शिवपुर और अजगरा शामिल है। 1957 में पहली बार हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह ने जीत दर्ज की थी। विरोधी के रूप में डॉ. राममनोहर लोहिया मैदान पर थे। इसके बाद 1959 में हुए उपचुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के प्रभु नारायण सिंह, 1962 में कांग्रेस के बालकृष्ण सिंह, 1967 संयुक्त सोशलिष्ट पार्टी के निहाल सिंह, 1971 में कांग्रेस के सुधाकर पांडेय, 1977 में भारतीय लोकदल के नरसिंह यादव, 1980 जनता पार्टी के निहाल सिंह, 1984 में कांग्रेस के चंद्र त्रिपाठी, 1989 में जनता दल के कैलाश नाथ सिंह यादव ने अपनी-अपनी जीत दर्ज किया।1991 में पहली बार बीजेपी ने अपना खाता खोला और 1998 तक भाजपा के आनंद रत्न मौर्या का यहां वर्चस्व कायम रहा। 1999 में भाजपा के इस विजय रथ को शराब के बड़े कारोबारी व सपा नेता जवाहर लाल जायसवाल ने रोक दिया। साल 2004 में बसपा के कैलाश नाथ सिंह ने इस सीट पर विजय हासिल की। वहीं साल 2009 में रामकिशुन यादव ने एक बार फिर से सपा को जीत दिलाई, लेकिन साल 2014 में मोदी लहर चली और भाजपा के महेन्द्रनाथ पाण्डेय ने जीत दर्ज किया। लेकिन 2019 की लोकसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. महेन्द्रनाथ पांडेय के साथ सपा के संजय सिंह चौहान के बीच हुई कांटे की टक्कर में महेन्द्रनाथ पांडेय ने फिर से बाजी मार ली। इस चुनाव में कांटे की टक्कर के बाद डॉ. महेन्द्रनाथ पांडेय को कुल 5,10,733 वोट मिले थे जबकि सपा के संजय सिंह चौहान को 4,96,774 वोट से संतुष्ट होना पड़ा था। इसके बाद भाजपा सांसद डॉ. महेन्द्रनाथ पांडेय, केंद्रीय मंत्री मंडल में शामिल किये गए। वर्तमान में डॉ. महेन्द्रनाथ पांडेय केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री के रूप में अपना कार्यभार संभाले हुए है। बहरहाल, सपा के लिए 2024 का चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सपा ने क्षत्रिय जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। 2024 लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों के राजनीति कैरियर पर नजर डाले तो महेंद्र नाथ पांडेय का जन्म 15 अक्टूबर, 1948 को गाजीपुर के पखनपुर गांव में हुआ था। पत्रकारिता में मास्टर्स की डिग्री के साथ-साथ पीएचडी हासिल करने वाले डॉ0 महेन्द्रनाथ पांडेय ने अपनी शिक्षा वाराणसी से प्राप्त की। इस दौरान वह छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। साल 1973 में वह सीएम एंग्लो बंगाली इण्टर कॉलेज से अध्यक्ष चुने गए तो वहीं 1978 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के महामंत्री भी बने। साल 1978 में ही वे आरएसएस से जुड़े। 1975-1976 में एवीबीपी के वाराणसी जिला संयोजक रहे। 1985-1986 में उनको भाजयुमो का प्रदेश मंत्री बनाया गया। 1987 में भाजपा उत्तर प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य चुने गए। पहली बार 1991 में गाज़ीपुर जिले की सैदपुर विधानसभा से वह विधायक चुने गए। उन्होंने 1996 में भी दोबारा सैदपुर का प्रतिनिधित्व किया। और एक बार सरकार में मंत्री भी रहे। अब वीरेंद्र सिंह की बात करे तो मूलतः वाराणसी जनपद के चिरईगांव के निवासी हैं। इससे पहले वीरेंद्र सिंह कांग्रेस, बसपा और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर चुके हैं। वीरेंद्र सिंह ने चिरईगांव विधानसभा सीट से 1996 में अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी। 2003 में चिरईगांव विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने बसपा के टिकट पर जीत हासिल की और दोबारा विधानसभा में पहुंचे। बसपा का साथ छूटने के बाद उन्होंने सपा का दामन थामा और पार्टी की ओर से लगातार कार्य करने लगे। बताया जा रहा है कि दिग्विजय सिंह के प्रयासों से 2012 में उन्होंने एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। हालांकि 2012 चुनाव के बाद उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और 2017 में फिर से बसपा का दामन थाम लिया। उन्हें बसपा रास नहीं आई और वह फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। बीते नगर निकाय चुनाव के पहले सपा ने वीरेंद्र सिंह को राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी सौंपी थी। अब बसपा के प्रत्याशी सत्येंद्र मौर्य की बात करे तो, सत्येंद्र वर्ष 1995 से पार्टी से जुड़े हैं। वह वर्ष 2007 में बसपा के कुशवाहा भाईचारा समाज के वाराणसी जिलाध्यक्ष बने और वर्ष 2009 तक इस पद के दायित्वों का निर्वहन किया। सत्येंद्र वाराणसी के अजगरा विधानसभा सीट के गोसाईपुर गांव के निवासी है। पिछले दो दशकों से वो बसपा से ही अपनी राजनीति कर रहे हैं। चंदौली लोकसभा सीट पर मौर्या मतदाताओं की तादाद 2.40 लाख के करीब है। यादव वोटरों के बाद मौर्य वोटर्स ही निर्णायक साबित होते हैं। ऐसे में बसपा प्रत्याशी लड़ाई को रोचक बना सकता है।