मुख्तार का आज होगा पोस्टमार्टम, उसके बाद परिजनों को सौपा जाएगा शव

बीपी शाम हृदय गति रुकने से मुख्तार की हुई है मौत

प्रखर डेस्क। बांदा जेल में बंद बाहुबली मुख्तार अंसारी की हार्ट अटैक से मौत हो गई है। मेडिकल कॉलेज बांदा ने उसकी मौत की पुष्टि भी कर दी है। पूरे यूपी में पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी है। मऊ, गाजीपुर और बांदा जिले में धारा 144 लागू कर दी गई है। बतादे कि मुख्तार का एक बेटा अब्बास इस वक्त कासगंज जेल में सजा काट रहा है तो दूसरा और छोटा बेटा उमर अब्बास दो दिन पहले ही मेडिकल कॉलेज पिता को देखने आया था। परिवार के करीबियों ने बताया कि जैसे ही उमर को प्रशासन की ओर से उसके पिता की मौत की सूचना दी गई वह धड़ाम से अपनी कुर्सी पर गिर पड़ा। उसने भरे गले से कहा कि दो दिन पहले इन पुलिस वालों ने अस्पताल में भर्ती पिता को शीशे से भी देखने नहीं दिया और आज जब वह इस दुनिया में नहीं है तो वही पुलिस प्रशासन उनके जनाजे को कंधा देने के लिए बुलावा भेज रहा है। ऐसे में एक बेटे के दिल पर क्या गुजर रही होगी, इन अधिकारियों को क्या मालूम। बकौल उमर जबसे उम्र संभाली तब से कई साल बिना पिता के बिताए हैं, भरोसा था कि कभी तो पिता का कंधा सिर रखने के लिए मिलेगा, लेकिन क्या पता था कि वह कंधा अब उसे कभी नसीब नहीं होगा। वहीं, मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी ने कहा है कि पोस्टमार्टम सुबह होगा। इसके बाद हम आगे की प्रक्रिया (अंतिम संस्कार) करेंगे। लगभग पांच डॉक्टरों का पैनल बनाया गया है (पोस्टमार्टम करने के लिए)। बताते चले कि कभी जिसके नाम से गुंडे माफिया और बिल्डर्स भी कांपा करते थे, किसी ने नहीं सोचा था कि कभी वह माफिया भी खौफ के साए में जिंदगी बिताएगा। कुछ ऐसा ही हाल था पूरब के डॉन कहे जाने वाले माफिया मुख्तार अंसारी का, जिसकी मौत हुई तो बीमारी की वजह से लेकिन उसके पीछे कानून का खौफ भी शामिल था, जो उसको उसके गुनाह याद कर रहा था। जब से मुख्तार पंजाब से बांदा जेल आया था, शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो, जब उसने यूपी की जेल से दूसरी जेल भेजे जाने की इच्छा न की हो। यही वजह थी कि कब वह ब्लड प्रेशर, शुगर और पेट की बीमारी की गिरफ्त में आ गया, उसे खुद ही नहीं पता चला। इसके अलावा उसे लगातार दो तीन मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी है। वहीं, जिस दिन से प्रदेश में अतीक और उसके भाई की हत्या हुई है, तभी से मुख्तार के दिल में कानून और मौत खौफ और पैदा हो गया था। यही वह हालात थे कि जेल में उसका एक-एक दिन एक-एक साल के बराबर बीत रहा था। आखिर में वह घड़ी भी आ गई, जब खौफ ही उसकी मौत बन गई और उसकी धड़कनों ने साथ छोड़ दिया।