गंगाजल से होगा कोरोना का इलाज, बीएचयू का दावा

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गंगा जल से बैक्टीरियोफाज स्प्रे बन कर तैयार है, बस क्लिनिकल ट्रायल की परमिशन बाकी है

 

 

प्रखर वाराणसी। कोरोना काल में अलग-अलग देशो में दवा का परीक्षण इत्यादि कार्य जारी है लेकिन अभी तक दवा नही बन सकी है। कोरोना दिनों दिन बिकराल रूप लेता जा रहा है। कोरोना के लेकर वाराणसी से एक खबर आ रही है कि गंगाजल के बैक्टीरियोफेज से कोरोना से मुक्ति ही सकेगी। बतादे कि यह दावा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मेडिकल साइंस की ओर से किया गया है। बताया जा रहा है कि बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ विजय नाथ मिश्रा का कहना है कि 1896 में जब कालरा महामारी आई थी तब डॉक्टर हैकिंग ने एक रिसर्च किया था। डॉक्टर हैकिंग के अनुसार जो गंगाजल का सेवन करते हैं उन्हें कालरा नहीं हो रहा है यह रिसर्च काफी दिनों तक पड़ा रहा।
डॉ मिश्रा का ने बताया कि गंगा में वायरस से लड़ने के लिए बैक्टीरिया मिल रहे हैं। 1980 में भी यह पता चला कि बैक्टीरियोफेज सभी नदियों मैं पाए जाते हैं लेकिन गंगा में ये 1300 प्रकार के मिलते हैं। यमुना में 130 प्रकार के मिलते हैं जबकि नर्मदा में यह 120 प्रकार के मिलते हैं। ये फेज गंगा नदी में काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी उपयोगिता को जॉर्जिया और रूस ने समझा है। जॉर्जिया में कोई एंटीबायोटिक नहीं खाता है वहां पर फेज पिलाकर इलाज किया जाता है। वहां इसकी प्रयोगशालाए भी हैं जहां पर एंटीबायोटिक का असर करना बंद हो जाता है वहां फेज या फॉज से इलाज किया जाता है। प्रोफेसर गोपाल नाथ ने 1980-90 के बीच बीएचयू में मरीजों का फॉज के जरिये इलाज किया था। इलाज से काफी मरीज ठीक भी हुए थे। जब कोरोना का संक्रमण फैला तो बोर्सिकि ने बताया कि इसके विरुद्ध किसी लिविंग वायरस का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे टीबी के लिए बीसीजी का उपयोग किया जाता है। और यह बीसीजी कोई दवा नहीं होती है। इसमें लाइव बैक्टीरिया होता है। इससे कोई नुकसान नहीं होता। इससे टीबी खत्म होता है। मालूम हो कि इसके लिए गंगा मामलों के एक्सपर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट के एमिकस क्यूरी एडवोकेट अरुण गुप्ता ने अप्रैल माह में राष्ट्रपति को पत्र भी लिखा था। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि गंगाजल के औषधीय गुणों और बैक्टीरियोफाज का पता लगाया जाना चाहिए। लेकिन फिर 10 मई को आईसीएमआर ने इसे रिजेक्ट कर दिया और कहा कि इसकी कोई क्लीनिकल स्टडी नहीं हुई है कि हम गंगा के पानी से कोई इलाज किया जा सके। फिर अरुण गुप्ता द्वारा एक ग्रुप बनाकर इस ओर रिसर्च शुरू किया। उन्होंने इस रिसर्च के दौरान 112 जर्नल निकाले। इस रिसर्च में उन्होंने ने एक रिसर्च बैक्टीरियाफा की स्टडी की और इसे वायरोफाज नाम दिया। इसके अलावा अरुण गुप्ता ने बताया कि हमें इंटरनेशनल माइक्रोबायलॉजी के आगामी अंक में जगह मिलेगी। हम लोग फाजबैक्टीरिया के द्वारा कोरोना संक्रमण का दो विधियों से इलाज कर सकते हैं। यह वायरस नाक में अटैक करते हैं। हमने गंगोत्री से 20 किलोमीटर नीचे गंगाजल लिया। हमने यह पाया कि वहां फेज की गुणवत्ता अच्छी है। फिर हमने इसका नोजस्प्रे बना दिया है। लेकिन अभी इसका क्लीनिकल ट्रायल होना है।
इसके लिए बीएचयू की एथिकल कमेटी से पास होने पर इसका ट्रायल होगा। अभी केमिकल स्टडी की परिमिशन नहीं मिली। लेकिन प्रति ने इसका ट्रायल किया है। इसके लिए हमने एक सर्वे भी किया है। गंगा किनारे 50 मीटर रहने वाले 490 लोगों को हमने इस सर्वे में शामिल किया। जिसमें 274 ऐसे लोग है जो रोज गंगा नहाते पीते है। उनमें किसी को कोरोना नहीं है। इसमें 90 साल के लोग शामिल हैं। अन्य 217 लोग भी इसी दायरे में रहते हैं। लेकिन वे गंगाजल का इस्तेमाल नहीं करते। उनमें 20 लोगों को कोरोना हो गया है और इनमें से 2 की मौत भी हो चुकी है। यदि एथिकल कमेटी हमको परिमिशन देगी तो इसका ट्रायल जल्द शुरू हो जाएगा। बैक्टीरियोफाज स्प्रे बन गया है। जिससे कोरोना का मुकबला किया जा सकता है। आगे अरुण गुप्ता का कहना है कि गंगाजल में हजारों प्रकार के बैक्टीरियोफाज पाए जाते हैं। फाज का एक गुण होता है जो शरीर में प्रवेश करने पर यह सभी प्रकार के वायरस को मार देता है। फाज वायरस के अलावा श्वसन तंत्र के वायरस को भी खत्म कर सकता है। इस स्टडी को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा। इसे राष्ट्रपति ने आईसीएमआर को भेज दिया। लेकिन इस पर आईसीएमआर ने रिसर्च करने से मना कर दिया। इसके बाद हमने बीएचयू की टीम से संपर्क किया। यहाँ लगभग पांच डाक्टरों की टीम बनाकर इस पर क्लीकल ट्रायल शुरू किया। जिसमें यह सामने आया कि यह फाज कोरोना को नष्ट कर सकता है।